परिचय |
गन्ना एक प्रमुख व्यवसायिक फसल है। विषम परिस्थितियां भी गन्ना की फसल को बहुत अधिक प्रभावित नहीं कर पाती इन्ही विशेष कारणों से गन्ना की खेती अपने आप में सुरक्षित व लाभ की खेती है।
प्रदेश में प्रमुख गन्ना उत्पादक जिले नरसिंहपुर, छिंदवाड़ा, बुरहानपुर, बैतूल व दतिया जिले हैं।वर्तमान में कुल गन्ना उत्पादन का लगभग 50 प्रतिशत रकवा नरसिंहपुर जिले में है। जिसमे उत्पादकता वृद्वि की असीम सम्भावन ाएं हैं। जो वैज्ञानिक तकनीक व कुशल सस्य प्रबंधन के माध्यम से ही संभव है। साथ ही दिनो-दिन प्रदेश में सिंचाई क्षेत्रफल में वृद्वि के कारण नये गैर-परम्परागत क्षेत्रफलों में भी गन्ना की खेती की जा सकती है।
प्रदेश का नाम
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वर्ष 2007-08
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वर्ष 2012-13
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वर्ष 2013-14
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क्षे़त्रफल (हे.) |
उत्पादकता (कि.ग्रा/हे.) |
क्षे़त्रफल (हे.) |
उत्पादकता (कि.ग्रा/हे.) |
क्षे़त्रफल (हे.) |
उत्पादकता (कि.ग्रा/हे.) |
म.प्र. |
77300 |
42490 |
64900 |
51630 |
104400 |
52000 |
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गन्ना फसल उत्पादन की प्रमुख समस्याएं |
- रा अनुशंसित जातियों का उपयोग न करना व पुरानी जातियों पर निर्भर रहना।
- रोगरोधी उपयुक्त किस्मों की उन्नत बीजों की अनुपलब्धता।
- बीजो उत्पादन कार्यक्रम का अभाव।
- बीज उपचार न करने से बीज जनित रोगों व कीड़ों का प्रकोप अधिक एवं एकीकृत पौध संरक्षण उपायों को न अपनाना।
- कतार से कतार कम दूरी व अंतरवर्तीय फसलें न लेने से प्रति हे. उपज व आय में कमी।
- पोषक तत्वों का संतुलित एवं एकीकृत प्रबंधन न किया जाना।
- उचित जल निकास एवं सिंचाई प्रबंधन का अभाव।
- उचित जड़ी प्रबंधन का अभाव।
- गन्ना फसल के लिए उपयोगी कृषि यंत्रों का अभाव जिसके कारण श्रम लागत अधिक होना
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गन्ना फसल ही क्यों चुने |
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गन्ना एक प्रमुख बहुवर्षीय फसल है अच्छे प्रबंधन से साल दर साल 1,50,000 रूपये प्रति हेक्टेयर से अधिक मुनाफा कमाया जा सकता है।
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प्रचलित फसल चक्रों जैसे मक्का-गेंहू या धान-गेंहू, सोयाबीन-गेंहू की तुलना में अधिक लाभ प्राप्त होता है
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यह निम्नतम जोखिम भरी फसल है जिस पर रोग, कीट ग्रस्तता एवं विपरीत परिस्थितियों का अपेक्षाकृत कम असर होता है।
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गन्ना के साथ अन्तवर्तीय फसल लगाकर 3-4 माह में ही प्रारंभिक लागत मूल्य प्राप्त किया जा सकता है
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गन्ना की किसी भी अन्य फसल से प्रतिस्पर्धा नहीं है। वर्ष भर उपलब्ध साधनों एवं मजदूरों का सद्उपयोग होता है।
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उपयुक्त भूमि, मौसम व खेत की तैयारी |
उपयुक्त भूमि- गन्ने की खेती मध्यम से भारी काली मिट्टी में की जा सकती है। दोमट भूमि जिसमें सिंचाई की उचित व्यवस्था व जल का निकास अच्छा हो, तथा पी.एच. मान 6.5 से 7.5 के बीच हो, गन्ने के लिए सर्वोत्तम होती है।
उपयुक्त मौसम- गन्ने की वुआई वर्षा में दो बार किया जा सकता है।
शरदकालीन बुवाई: |
इसमें अक्टूबर -नवम्बर में फसल की बुवाई करते हैं और फसल 10-14 माह में तैयार होता है।
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बसंत कालीन बुवाई: |
इसमें फरवरी से मार्च तक फसल की बुवाई करते है। इसमें फसल 10 से12 माह मेंतैयार होता है।
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शरदकालीन गन्ने, बसंत में बोये गये गन्ने से 25-30 प्रतिशत व ग्रीष्मकालीन गन्ने से 30-40 प्रतिशत अधिक पैदावार देता है।
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खेत की तैयारी |
खेत की गी्रष्मकाल में अपे्रल से 15 मई के पूर्व एक गहरी जुताई करें। इसके पश्चात 2 से 3 बार देशी हल या कल्टीवेटर, से जुताई कर तथा रोटावेटर व पाटा चलाकर खेत को भुरभुरा, समतल एवं खरपतवार रहित कर लें एवं रिजर की सहायता से 3 से 4.5 फुट की दूरी में 20-25 से.मी. गहरी कूड़े बनाये।
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उपयुक्त किस्म, बीज का चयन, व तैयारी |
गन्ने के सारे रोगों की जड़ अस्वस्थ बीज का उपयोग ही है। गन्ने की फसल उगाने के लिए पूरा तना न बोकर इसके दो या तीन आंख के टुकड़े काटकर उपयोग में लायें। गन्ने ऊपरी भाग की अंकुरण 100 प्रतिशत, बीच में 40 प्रतिशत और निचले भाग में केवल 19 प्रतिशत ही होता है। दो आंख वाला टुकड़ा सर्वोत्तम रहता है। |
गन्ना बीज का चुनाव करते समय सावधानियां |
- उन्नत जाति के स्वस्थ निरोग शुद्ध बीज का ही चयन करें।
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गन्ना बीज की उम्र लगभग 8 माह या कम हो तो अंकुरण अच्छा होता है। बीज ऐसे खेत से लेवें जिसमें रोग व कीट का प्रकोप न हो एवं जिसमें खाद पानी समुचित मात्रा में दिया जाता रहा हो
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जहां तक हो नर्म गर्म हवा उपचारित (54 से.ग्रे. एवं 85 प्रतिशत आद्र्वता पर 4 घंटे) या टिश्यूकल्चर से उत्पादित बीज का ही चयन करें।
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हर 4-5 साल बाद बीज बदल दें क्योंकि समय के साथ रोग व कीट ग्रस्तता में वृद्वि होती जाती है।
- बीज काटने के बाद कम से कम समय में बोनी कर दें।
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गन्ने की उन्नत जातियां |
गन्ने की फसल से भरपूर उत्पादन लेने के लिए उन्नत किस्म के बीज का प्रयोग करना आवश्यक है। उन्नत किस्मों से 15-20 प्रतिशत अधिक उत्पादन प्राप्त होता है मध्यप्रदेश के लिये गन्ने की उपयुक्त किस्मों का विवरण-
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गन्ना बुवाई का सबसे उपयुक्त समय अक्टूबर-नवम्बर ही क्यों चुनें |
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फसल में अग्रवेधक कीट का प्रकोप नहीं होता।
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फसल वृद्वि के लिए अधिक समय मिलने के साथ ही अंतरवर्तीय फसलों की भरपूर संभावना।
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अंकुरण अच्छा होने से बीज कम लगता है एवं कल्ले अधिक फूटते हैं।
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अच्छी बढ़वार के कारण खरपतवार कम होते है।
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सिंचाई जल की कमी की दशा में, देर से बोयी गई फसल की तुलना में नुकसान कम होता है।
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फसल के जल्दी पकाव पर आने से कारखाने जल्दी पिराई शुरू कर सकते हैं।
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जड़ फसल भी काफी अच्छी होती है।
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बीज की मात्रा एवं बुआई पद्वतियां |
गन्ना बीज की मात्रा बुवाई पद्वति, कतार से कतार की दूरी एवं गन्ने की मोटाई पर के आधार पर निर्भर करता है जिसका विवरण निम्नानुसार है। सामान्यतः मेड़नाल पद्वति से बनी 20-25 से.मी. बनी गहरी कूड़ों में सिरा से सिरा या आंख से आंख मिलाकर सिंगल या डबल गन्ना टुकड़े की बुवाई की जाती है। बिछे हुए गन्ने के टुकड़ों के ऊपर 2 से 2.5 से.मी. से अधिक मिट्टी की परत न हो अन्यथा अंकुरण प्रभावित होता है।
क्र.
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बुवाई की पद्वति
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पौध दूरी ( फुट )
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आंखे/टुकड़ा
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वजन (क्वि./हे.)
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1
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मेड़नाली पद्वति
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4.5
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2 आंख/टुकड़ा
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75-80
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बीजोपचार |
बीज जनित रोग व कीट नियंत्रण हेतु कार्बेन्डाजिम 2 ग्रा/ लीटर पानी व क्लोरोपायरीफास 5 मि.ली./ली हे. की दर से घोल बनाकर आवश्यक बीज का 15 से 20 मिनिट तक उपचार करें।
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मृदा उपचार |
ट्राईकोडर्मा विरडी / 5 कि.ग्रा./हे. 150 कि.ग्रा. वर्मी कम्पोस्ट के साथ मिश्रित कर एक या दो दिन नम रखकर बुवाई पूर्व कूड़ों में या प्रथम गुड़ाई के समय भुरकाव करने से कवकजनित रोगों से राहत मिलती है।
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एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन |
खाद एवं उर्वरक:-
फसल के पकने की अवधि लम्बी होने कारण खाद एवं उर्वरक की आवश्यकता भी अधिक होती है अतः खेत की अंतिम जुताई से पूर्व 20 टन सड़ी गोबर/कम्पोस्ट खाद खेत में समान रूप से मिलाना चाहिए इसके अतिरिक्त 300 किलो नत्रजन (650 कि.ग्रा. यूरिया ), 85 कि.ग्रा. स्फुर, ( 500 कि.ग्रा. सिंगल सुपर फास्फेट) एवं 60 कि. पोटाश (100 कि.ग्रा. म्यूरेटआपपोटाश) प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए। स्फुर एवं पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई के समय प्रयोग करें एवं नत्रजन की मात्रा को निम्नानुसार प्रयोग करें।
शरदकालीन गन्नाः- शरदकालीन गन्ने में ऩत्रजन की कुल मात्रा को चार समान भागों में विभक्त कर बोनी के क्रमशः 30, 90, 120एवं 150 दिन में प्रयोग करें।
बसन्तकालीन गन्नाः- बसन्तकालीन गन्ने में नत्रजन की कुल मात्रा को तीन समान भागों में विभक्त कर बोनी क्रमशः 30, 90 एवं 120 दिन में प्रयोग करें।
नत्रजन उर्वरक के साथ नीमखली के चूर्ण में मिलाकर प्रयोग करने में नत्रजन उर्वरक की उपयोगिता बढ़ती है साथ ही दीमक से भी सुरक्षा मिलती है। 25 कि.ग्रा. जिंक सल्फेट व 50 कि.ग्रा. फेरस सल्फेट 3 वर्ष के अंतराल में जिंक व आयरन सूक्ष्म तत्व की पूर्ति के लिए आधार खाद के रूप में बुवाई के समय उपयोग करें।
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विशेष सुझाव – |
- मृदा परीक्षण के आधार पर ही आवष्यक तत्वों की अपूर्ति करें।
- स्फुर तत्व की पूर्ति सिंगल सु.फा.फे. उर्वरक के द्वारा करने पर 12 प्रतिषत गंधक तत्व (60 कि.ग्रा./हे.) अपने आप उपलब्ध हो जाता है।
- जैव उर्वरकों की अनुषंसित मात्रा को 150 कि.ग्रा. वर्मी कम्पोस्ट या गोबर खाद के साथ मिश्रित कर 1-2 दिन नम कर बुवाई पूर्व कुड़ों में या प्रथम मिट्टी चढ़ाने के पूर्व उपयोग करें। जैव उर्वरकों के उपयोग से 20 प्रतिषत नत्रजन व 25 प्रतिषत स्फुर तत्व की आपूर्ति होने के कारण रसायनिक उर्वरकों के उपयोग में तद्नुसार कटौती करें।
- जैविक खादों की अनुषंसित मात्रा उपयोग करने पर नत्रजन की 100 कि.ग्रा./ हे. रसायनिक तत्व के रूप में कटौती करें।
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जल प्रबंधन -सिंचाई व जल निकास |
गर्मी के दिनों में भारी मिट्टी वाले खेतों में 8-10 दिन के अंतर पर एवं ठंड के दिनों में 15 दिनों के अंतर से सिंचाई करें। हल्की मिट्टी वाले खेतों में 5-7 दिनों के अंतर से गर्मी के दिनों में व 10 दिन के अंतर से ठंड के दिनों में सिंचाई करना चाहिये। सिंचाई की मात्रा कम करने के लिये गरेड़ों में गन्ने की सूखी पत्तियों की पलवार की 10-15 से.मी. तह बिछायें। गर्मी में पानी की मात्रा कम होने पर एक गरेड़ छोड़कर सिंचाई देकर फसल बचावें। कम पानी उपलब्ध होने पर ड्रिप (टपक विधि) से सिंचाई करने से भी 60 प्रतिशत पानी की बचत होती है।
गर्मी के मौसम तक जब फसल 5-6 महीने तक की होती है स्प्रींकलर (फव्वारा) विधि से सिंचाई करके 40 प्रतिशत पानी की बचत की जा सकती है। वर्षा के मौसम में खेत में उचित जल निकास का प्रबंध रखें। खेत में पानी के जमाव होने से गन्ने की बढ़वार एवं रस की गुणवत्ता प्रभावित होती है। |
खाली स्थानों की पूर्ति |
कभी-कभी पंक्तियों में कई जगहों पर बीज अंकुरित नहीं हो पाता है इस बात में ध्यान में रखते हुए खेत में गन्ने की बुआई के साथ-साथ अलग से सिंचाई स्त्रोत के नजदीक एक नर्सरी तैयार कर लें। इसमें बहुत ही कम अंतराल पर एक आंख के टुकड़ों व बुवाई करें। खेत में बुवाई के एक माहवाद खाली स्थानों पर नर्सरी में तैयार पौधों को सावधानीपूर्वक निकाल कर रोपाई कर दें। |
खरपतवार प्रबंधन |
अंधी गुड़ाईः
गन्ने का अंकुरण देर से होने के कारण कभी-कभी खरपतवारों का अंकुरण गन्ने से पहले हो जाता है। जिसके नियंत्रण हेतु एक गुड़ाई करना आवश्यक होता है जिसे अंधी गुड़ाई कहते है।निराई-गुड़ाई:
आमतौर पर प्रत्येक सिंचाई के बाद एक गुड़ाई आवश्यक होगी इस बात का विशेष ध्यान रखें कि व्यांत अवस्था (90-100 दिन) तक निराई-गुड़ाई का कार्य
मिट्टी चढ़ाना:
वर्षा प्रारम्भ होने तक फसल पर मिट्टी चढ़ाने का कार्य पूरा कर लें (120 व 150 दिन) ।
रासायनिक नियंत्रणः
- बुवाई पश्चात अंकुरण पूर्व खरपतवारों के नियंत्रण हेतु एट्राजीन 2.0कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 600 लीटर पानी में घोल बनाकर बुआई के एक सप्ताह के अन्दर खेत में समान रूप से छिड़काव करें।
- खडी फसल में चैड़ी पत्ती वाले खरपतवारों के लिए 2-4-डी सोडियम साल्ट 2.8 कि.ग्रा. /हे‐ हिसाब से 600 लीटर पानी का घोल बनाकर बुवाई के 45 दिन बाद छिड़काव करें।
- खडी फसल में चैड़ी -सकरी मिश्रित खरपतवार के लिए 2-4-डी सोडियम साल्ट 2.8 कि.ग्रा ़ मेटीब्यूजन 1 कि.ग्रा. /हे‐ हिसाब से 600 लीटर पानी का घोल बनाकर बुवाई के 45 दिन बाद छिड़काव करें।
- उपरोक्त नीदानाशकों के उपयोग के समय खेत में नमी आवश्यक है।
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अन्तरवर्ती खेती |
गन्ने की फसल की बढ़वार शुरू के 2-3 माह तक धीमी गति से होता है गन्ने के दो कतारों के बीच का स्थान काफी समय तक खाली रह जाता है। इस बात को ध्यान में रखते हुए यदि कम अवधि के फसलों को अन्तरवर्ती खेती के रूप में उगाया जाये तो निश्चित रूप से गन्ने के फसल के साथ-साथ प्रति इकाई अतिरिक्त आमदनी प्राप्त हो सकता है। इसके लिये निम्न फसलें अन्तरवर्ती खेती के रूप में ऊगाई जा सकती है।
शरदकालीन खेतीः-गन्ना+आलू(1:2), गन्ना + प्याज (1:2), गन्ना+मटर(1+1),गन्ना+धनिया(1:2) गन्ना+चना(1:2), गन्ना+गेंहू(1:2)
बसंतकालीन खेतीः- गन्ना + मूंग(1+1), गन्ना +उड़द (1+1), गन्ना+धनिया (1:3), गन्ना +मेथी (1:3), |
गन्ने को गिरने से बचाने के उपाय |
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गन्ना के कतारों की दिशा पूर्व-पश्चिम रखें।
- गन्ना की उथली बोनी न करें।
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गन्ना के कतार के दोनों तरफ 15 से 30 से.मी. मिट्टी दो बार (जब पौधा 1.5 से 2 मीटर का (120 दिन बाद) हो तथा इससे अधिक बढ़वार होने पर चढ़ायें(150दिन बाद)।
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गन्ना की बंधाई करें इसमें तनों को एक साथ मिलाकर पत्तियों के सहारे बांध दें। यह कार्य दो बार तक करें। पहली बंधाई अगस्त में तथा दूसरी इसके एक माह बाद जब पौधा 2 से 2.5 मीटर का हो जाये। बंधाई का कार्य इस प्रकार करें कि हरी पत्तियों का समूह एक जगह एकत्र न हो अन्यथा प्रकाश संलेषण क्रिया प्रभावित होगी।
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पौध संरक्षण |
(अ) कीट नियंत्रण :-
(ब) रोग नियंत्रण:-
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गन्ने की कटाई |
फसल की कटाई उस समय करें जब गन्ने में सुक्रोज की मात्रा सबसे अधिक हो क्योंकि यह अवस्था थोड़े समय के लिये होती है और जैसे ही तापमान बढ़ता है सुक्रोज का ग्लूकोज में परिवर्तन प्रारम्भ हो जाता है और ऐसे गन्ने से शक्कर एवं गुड़ की मात्रा कम मिलता है। कटाई पूर्व पकाव सर्वेक्षण करें इस हेतु रिफलेक्टो मीटर का उपयोग करें यदि माप 18 या इसके उपर है तो गन्ना परिपक्व होने का संकेत है। गन्ने की कटाई गन्ने की सतह से करें।
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उपज |
गन्ने उत्पादन में उन्नत वैज्ञानिक तकनीकों का उपयोग कर लगभग 1000 से 1500 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक गन्ना प्राप्त किया जा सकता है।
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स्वतः गन्ना बीज तैयार करने की आधुनिक पद्वति |
टिश्यू कल्चर एवं पालीबैग तकनीकः-
टश्यू कल्चर – गन्ना से ऊतक संवर्धन तकनीकी अपनाकर तैयार किये गये पौधों को टिश्यू कल्चर पौध कहा जाता है।
रोपण पूर्व पौध स्थिरीकरण – प्रयोगशाला से शिशु पौधे लाकर पहले ग्रीन हाउस या नेट शेड में पॉलीथीन की थैलियों में 30-45 दिन रखकर स्थिरीकरण किया जाता है जिससे पौधे खेत में रोपण उपरान्त अच्छे से स्थापित हो सकें।
टिश्यू कल्चर पौध का खेत में रोपण –
- शीतकालीन गन्न में 125ग125 से.मी. (7000पौधे) एवं
- बसंतकालीन गन्ने में 100 ग 100 सेंमी (10,000पौधे) दूरी पर पौधें का रोपण करें।
- नालियों के अंदर 15-20 से.मी. के गड्ढे खोंदे।
- गड़ढों में पहले 60 ग्राम सुपर फास्फेट एवं 15 ग्राम पोटाश मिलाकर सबसे नीचे डाले। उसके बाद कम्पोस्ट एवं मिट्टी की हल्की परत डालें
- गड़ढों के बीचो-बीच अच्छी तरह लगा दें।
- पौध स्थापना तक हल्की सिंचाई अवश्य करें।
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गन्ना बीज तैयार करने की एक आंख के टुकड़े व बडचिप-पालीबैग पद्वति |
क्र. |
बुवाई की पद्वति |
पौध दूरी (से.मी) |
अनुमानित पौधे/हे. |
आंखे/टुकड़ा |
1 |
पालीबैग पद्वति से रोपण |
120 X 60 |
15000 |
1आंखे/टुकड़ा |
2 |
पालीबैग पद्वति से रोपण |
120 X 60 |
15000 |
बडचिप |
3 |
बडचिप की सीधे कूड़ों में बुवाई |
120 X 60 |
30000 |
बडचिप |
नोटः- गन्ना बडचिप को उपचारित कर 20 से 25 से.मी. गहरी कूड़ों में सीधे बुवाई की जा सकती है किन्तु बुवाई की गहराई 2.5 से. मी. से अधिक न हो व अंकुरण होने तक नमी का संरक्षण बना रहे। ड्रिप सिंचाई पद्वति के साथ अच्छे परिणाम प्राप्त हुये हैं।
विशेष सुझावः- उपरोक्त में से किसी भी पद्वति का सुविधानुसार चुनाव करते हुए समस्त तकनीकी अनुशंसाओं का पालन करते हुए 10 प्रतिशत रकवे में स्वतः का बीज तैयार करें जो अगले वर्ष एक हें. खेत के रोपण हेतु पर्याप्त होगा।
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गन्ने की खेती में यंत्रीकरण की आवश्यकता |
गन्ने की खेती में कुल उत्पादन लागत का लगभग 45 से 50 प्रतिशत भाग श्रमिक व बैल चलित शक्तियों पर व्यय होता है। अतः आधुनिक कृषियंत्रों के उपयोग से लगभग 50 प्रतिशत तक श्रम लागत में कमी की जा सकती है। |
जड़ी फसल से भरपूर पैदावार |
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जड़ी फसल पर भी बीजू फसल की तरह ही ध्यान दें और बताये गये कम लागत वाले उपाय अपनायें, तो जड़ी से भरपूर पैदावार ले सकतें हैं –
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समय पर गन्ने की कटाई: मुख्य फसल को समय पर ( नवम्बर माह में ) काटने से पेड़ी की अधिक उपज ली जा सकती है।
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जड़ी फसल दो बार से अधिक न लें
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गन्ने की कटाई सतह से करें
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ठूठे काटें व गरेडे़ तोडे़:
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खाली जगह भरें – उसमें नये गन्ने के टुकड़े उसी जाति के लगाकर सिंचाई करें।
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मुख्य फसल के लिए अनुशंसा अनुसार पर्याप्त उर्वरक दें
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सूखी पत्ती बिछायें: कटाई के बाद सूखी पत्तियों को खेत में जलाने के बजाय कूड़ों के मध्य बिछाने से उर्वरा शक्ति में वृद्वि होती है। उक्त सूखी पत्तिया बिछाने के बाद 1.5 प्रतिशत क्लोरपायरीफॉस का प्रति हेक्टेयर दवा का भुरकाव करें।
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पौध संरक्षण अपनायें: कटे हुऐ ठूठे पर कार्बेन्डाजिम 550 ग्राम मात्रा 250 लीटर पानी में घोलकर झारे की सहायता से ठॅठों के कटे हुये भाग पर छिड़के।
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जड़ी के लिये उपयुक्त जातिया: जड़ी की अधिक पैदावार लेने हेतु उन्नत जातियों जैसे को. 7318, को. 86032, को.जे.एन. 86 – 141, को.जे.एन. 86-600, को. जे.एन. 86 572, को. 94008 तथा को. 99004 का चुनाव करें।
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गन्ना फसल का आर्थिक विश्लेषण |
गन्ना एक दीर्घकाली फसल होने के नाते सामान्य फसलों की तुलना में लागत ज्यादा आती है साथ ही आय भी अधिक प्राप्त होती है। गन्ना फसल का व्यय आय विवरण निम्नानुसार है।
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अधिक उपज प्राप्त करने हेतु प्रमुख बिन्दु |
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प्रदेश में गन्ना क्षेत्र विकास के लिए होशंगाबाद, बड़वानी, बालाघाट, सिवनी, मंडला, धार, सतना, रीवा कटनी, जबलपुर, खरगोन, विदिशा आदि जिलों में अपार सम्भावनाएं है।
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अनुशंसित प्रजातियां (शीघ्र पकने वाली) को.जे.एन. 86-141, को.सी. 671 एवं को. 94008 , (मध्यम अवधि) को.जे.एन. 86-600, को. 86032 को .99004 का उपयोग करें।
- गन्ना फसल हेतु 8 माह की आयु का ही गन्ना बीज उपयोग करे।
- शरदकालीन गन्ना (अक्टूर-नवम्बर) की ही बुवाई करें।
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गन्ना की बुवाई कतार से कतार 120-150 से.मी. दूरी पर गीली कूंड पद्धति से करें।
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बीजोपचार (फफूदनाशक-कार्बेन्डाजेम 2 ग्रा. प्रति ली. एवं कीटनाशक -क्लोरोपायरीफास 5मि.ली./ली.15-20 मि. तक डुबाकर ) ही बुवाई करें।
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जड़ी प्रबंधन के तहत-ठूंट जमीन की सतह से काटना, गरेड़ तोड़ना, फफूदनाशक व कीटनाशक से ठूट का उपचार, गेप फिलिंग, संतुलित उर्वरक (एन.पी.के.-300:85:60) का उपयोग करें।
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गन्ने की फसल के कतारों के मध्य कम समय में तैयार होने वाली फसलों चना, मटर, धनिया, आलू, प्याज आदि फसलें लें
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खरपतवार नियंत्रण हेतु ऐट्राजिन 1.0 कि.ग्रा./हे. सक्रिय तत्व की दर से बुवाई के 3 से 5 दिन के अंदर एवं 2-4-डी 750 ग्रा./हे. सक्रिय तत्व 35 दिन के अंदर छिडकाव करे।।
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गन्ना उत्पादक क्षेत्रों में टपक सिंचाई पद्वति को प्रोत्साहन दिया जाए।
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गन्ना क्षेत्र विस्तार हेतु गन्ना उत्पादक किसानों के समूहों को शुगर केन हारवेस्टर, पावर बडचिपर एवं अन्य उन्नत कृषियंत्रों को राष्टीय कृषिविकास योजना अंतर्गत 40 प्रतिशत अनुदान उपलब्ध कराया जाना चाहिये।
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