(अ) मालवा अंचल: रतलाम, मन्दसौर,इन्दौर,उज्जैन,शाजापुर,राजगढ़,सीहोर,धार,देवास तथा गुना का दक्षिणी भाग
क्षेत्र की औसत वर्षा: 750 से 1250 मि.मी.
मिट्टी: भारी काली मिट्टी
असिंचित/अर्धसिंचित |
सिंचित(समय से) |
सिंचित(देरी से) |
जे.डब्ल्यू. 17,
जे.डब्ल्यू. 3269,
जे.डब्ल्यू. 3288,
एच.आई. 1500,
एच.आई. 1531,
एच.डी. 4672 (कठिया) |
जे.डब्ल्यू. 1201,
जे.डब्ल्यू. 322,
जे.डब्ल्यू. 273,
एच.आई. 1544,
एच.आई. 8498 (कठिया),
एम.पी.ओ. 1215 |
जे.डब्ल्यू. 1203,
एम.पी. 4010,
एच.डी. 2864,
एच.आई. 1454 |
(ब) निमाड अंचल: खण्डवा, खरगोन, धार एवं झाबुआ का भाग
क्षेत्र की औसत वर्षा: 500 से 1000 मि.मी.
मिट्टी: हल्की काली मिट्टी
असिंचित/अर्धसिंचित |
सिंचित(समय से) |
सिंचित(देरी से) |
जे.डब्ल्यू. 3020,
जे.डब्ल्यू. 3173,
एच.आई. 1500,
जे.डब्ल्यू. 3269 |
जे.डब्ल्यू. 1142,
जे.डब्ल्यू. 1201,
जी.डब्ल्यू. 366,
एच.आई. 1418 |
इस क्षेत्र में देरी से बुआई से बचें समय से बुआई को प्राथमिकता क्योंकि पकने के समय पानी की कमी।
किस्में: जे.डब्ल्यू. 1202,
एच.आई. 1454 |
(स) विन्ध्य पठार: रायसेन, विदिशा, सागर, गुना का भाग
क्षेत्र की औसत वर्षा: 1120 से 1250 मि.मी.
मिट्टी: मध्य से भारी काली जमीन
असिंचित/अर्धसिंचित |
सिंचित(समय से) |
सिंचित(देरी से) |
जे.डब्ल्यू. 17,
जे.डब्ल्यू. 3173,
जे.डब्ल्यू. 3211,
जे.डब्ल्यू. 3288,
एच.आई. 1531,
एच.आई. 8627(कठिया) |
जे.डब्ल्यू. 1142,
जे.डब्ल्यू. 1201,
एच.आई. 1544,
जी.डब्ल्यू. 273,
जे.डब्ल्यू. 1106 (कठिया),
एच.आई. 8498 (कठिया),
एम.पी.ओ. 1215 (कठिया), |
जे.डब्ल्यू. 1202,
जे.डब्ल्यू. 1203,
एम.पी. 4010,
एच.डी. 2864,
डी.एल. 788- 2 |
(द) नर्मदा घाटी: जबलपुर, नरसिंहपुर, होषंगाबाद, हरदा
क्षेत्र की औसत वर्षा: 1000 से 1500 मि.मी.
मिट्टी: भारी काली एवं जलोढ मिट्टी
असिंचित/अर्धसिंचित |
सिंचित(समय से) |
सिंचित(देरी से) |
जे.डब्ल्यू. 17,
जे.डब्ल्यू. 3288,
एच.आई. 1531,
जे.डब्ल्यू. 3211,
एच.डी. 4672 (कठिया) |
जे.डब्ल्यू. 1142,
जी.डब्ल्यू. 322, जे.डब्ल्यू. 1201, एच.आई. 1544, जे.डब्ल्यू. 1106, एच.आई. 8498, जे.डब्ल्यू. 1215 |
जे.डब्ल्यू. 1202,
जे.डब्ल्यू. 1203,
एम.पी. 4010,
एच.डी. 2932, |
(य) बैनगंगा घाटी: बालाघाट एवं सिवनी
क्षेत्र की औसत वर्षा: 1250मि.मी.
मिट्टी: जलोढ मिट्टी
असिंचित/अर्धसिंचित |
सिंचित(समय से) |
सिंचित(देरी से) |
जे.डब्ल्यू. 3269,
जे.डब्ल्यू. 3211,
जे.डब्ल्यू. 3288,
एच.आई. 1544, |
जे.डब्ल्यू. 1201,
जी.डब्ल्यू. 366,
एच.आई. 1544,
राज 3067 |
जे.डब्ल्यू. 1202,
एच.डी. 2932,
डी.एल. 788- 2 |
(र) हवेली क्षेत्र: रीवा, जबलपुर का भाग, नरसिंहपुर का भाग
क्षेत्र की औसत वर्षा: 1000 से 1375 मि.मी.
मिट्टी: हल्की कंकड़युक्त मिट्टी
वर्षा के पानी को बंधान के द्वारा खेत में रोका जाता है।
असिंचित/अर्धसिंचित |
सिंचित(समय से) |
सिंचित(देरी से) |
जे.डब्ल्यू. 3020,
जे.डब्ल्यू. 3173,
जे.डब्ल्यू. 3269,
जे.डब्ल्यू. 17,
एच.आई. 1500, |
जे.डब्ल्यू. 1142,
जे.डब्ल्यू. 1201,
जे.डब्ल्यू. 1106,
जी.डब्ल्यू. 322,
एच.आई. 1544, |
जे.डब्ल्यू. 1202,
जे.डब्ल्यू. 1203,
एच.डी. 2864,
एच.डी. 2932, |
ल. सतपुड़ा पठार: छिंदवाड़ा एवं बैतूल
क्षेत्र की औसत वर्षा: 1000 से 1250 मि.मी.
मिट्टी: हल्की कंकड़युक्त मिट्टी
असिंचित/अर्धसिंचित |
सिंचित(समय से) |
सिंचित(देरी से) |
जे.डब्ल्यू. 17,
जे.डब्ल्यू. 3173,
जे.डब्ल्यू. 3211,
जे.डब्ल्यू. 3288,
एच.आई. 1531, |
एच.आई. 1418,
जे.डब्ल्यू. 1201,
जे.डब्ल्यू. 1215,
जी.डब्ल्यू. 366, |
एच.डी. 2864,
एम.पी. 4010,
जे.डब्ल्यू. 1202,
जे.डब्ल्यू. 1203, |
(व) गिर्द क्षेत्र: ग्वालियर, भिण्ड, मुरैना एवं दतिया का भाग
क्षेत्र की औसत वर्षा: 750 से 1000 मि.मी.
मिट्टी: जलोढ़ एवं हल्की संरचना वाली जमीनें
असिंचित/अर्धसिंचित |
सिंचित(समय से) |
सिंचित(देरी से) |
जे.डब्ल्यू. 3288,
जे.डब्ल्यू. 3211,
जे.डब्ल्यू. 17,
एच.आई. 1531,
जे.डब्ल्यू. 3269,
एच.डी. 4672 |
एच.आई. 1544,
जी.डब्ल्यू. 273,
जी.डब्ल्यू. 322,
जे.डब्ल्यू. 1201,
जे.डब्ल्यू. 1106,
जे.डब्ल्यू. 1215,
एच.आई. 8498 |
एम.पी. 4010,
जे.डब्ल्यू. 1203,
एच.डी. 2932,
एच.डी. 2864 |
(ह) बुन्देलखण्ड क्षेत्र: दतिया, शिवपुरी, गुना का भाग टीकमगढ़,छतरपुर एवं पन्ना का भाग
क्षेत्र की औसत वर्षा: 1120 से 1250 मि.मी.
मिट्टी: लाल एवं काली मिश्रित जमीन
असिंचित/अर्धसिंचित |
सिंचित(समय से) |
सिंचित(देरी से) |
जे.डब्ल्यू. 3288,
जे.डब्ल्यू. 3211,
जे.डब्ल्यू. 17,
एच.आई. 1500,
एच.आई. 153 |
जे.डब्ल्यू. 1201,
जी.डब्ल्यू. 366,
राज 3067,
एम.पी.ओ. 1215,
एच.आई. 8498 |
एम.पी. 4010,
एच.डी. 2864 |
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जीरो टिलेज तकनीक:-
धान की पछेती फसल की कटाई के उपरांत खेत में समय पर गेहूँ की बोनी के लिय समय नहीं बचता और खेत ,खाली छोड़ने के अलावा किसान के पास विकल्प नहीं बचता ऐसी दशा में एक विशेष प्रकार से बनायी गयी बीज एवं खाद ड्रिल मशीन से गेहूँ की बुवाई की जा सकती है।
जिसमें खेत में जुताई की आवश्यकता नहीं पड़ती धान की कटाई के उपरांत बिना जुताई किए मशीन द्वारा गेहूँ की सीधी बुवाई करने की विधि को जीरो टिलेज कहा जाता है। इस विधि को अपनाकर गेहूँ की बुवाई देर से होने पर होने वाले नुकसान से बचा जा सकता है एवं खेत को तैयारी पर होने वाले खर्च को भी कम किया जा सकता है।
इस तकनीक को चिकनी मिट्टी के अलावा सभी प्रकार की भूमियों में किया जा सकता है। जीरो टिलेज मशीन साधारण ड्रिल की तरह ही है इसमें टाइन चाकू की तरह है यह टाइन्स मिट्टी में नाली जैसी आकार की दरार बनाता है जिससे खाद एवं बीज उचित मात्रा एवं गहराई पर पहुँचता है। इस विधि के निम्न लाभ है।:-
जीरो टिलेज तकनीक के लाभ :-
· इस मशीन द्वारा बुवाई करने से 85-90 प्रतिशत इंधन, उर्जा एवं समय की बचत की जा सकती है।
· इस विधि को अपनाने से खरपतवारों का जमाव कम होता है।
· इस मशीन के द्वारा 1-1.5 एकड़ भूमि की बुवाई 1 घंटे में की जा सकती हैं यह कम उर्जा की खपत तकनीक है अतः समय से बुवाई की दशा में इससे खेत तैयार करने की लागत 2000-2500 रू. प्रति हेक्टर की बचत होती है।
· समय से बुवाई एवं 10-15 दिन खेत की तैयारी के समय को बचा कर बुवाई करने से अच्छा उत्पादन लिया जा सकता है।
· बुवाई शुरू करने से पहले मशीन का अंशशोधन कर ले जिससे खाद एवं बीज की उचित मात्रा डाली जा सके।
· इस मशीन में सिर्फ दानेदार खाद का ही प्रयोग करें जिससे पाइपों में अवरोध उत्पन्न न हो।
· मशीन के पीछे पाटा कभी न लगाएँ।
फरो इरीगेशन रेज्ड बेड (फर्व) मेड़ पर बुवाई तकनीक:-
· मेड़ पर बुवाई तकनीक किसानों में प्रचलित कतार में बोनी या छिड़ककर बोनी से सर्वथा भिन्न है इस तकनीक में गेहूँ को ट्रेक्टर चलित रोजर कम ड्रिल से मेड़ों पर दो या तीन कतारों में बीज बोते है। इस तकनीक से खाद एवं बीज की बचत होती है। एवं उत्पादन भी प्रभावित नहीं होता है। इस तकनीक से उच्च गुणवत्ता वाला अधिक बीज उत्पादन किया जा सकता है।
मेड़ पर (फर्व) फसल लेने से लाभ
· बीज, खाद एवं पानी की मात्रा में कमी एवं बचत, मेडों में संरक्षित नमी लम्बे समय तक फसल को उपलब्ध रहती है एवं पौधों का विकास अच्छा होता है।
· गेहूँ उत्पादन लागत में कमी।
· गेहूँ की खेती नालियों एवं मेड़ पर की जाती इससे फसल गिरने की समस्या नहीं होती। मेड पर फसल होने से जड़ों की वृद्धि अच्छी होती है एवं जड़ें गहराई से नमी एवं पोषक तत्व अवशोषित करते हैं।
· इस विधि से गेहूँ उत्पादन में नालियो का प्रयोग सिंचाई के लिये किया जाता है यही नालियाँ अतिरिक्त पानी की निकासी में भी सहायक होती हैं।
· दलहनी एवं तिलहनी फसलों की उत्पादकता में वृद्धि होती है।
· मशीनो द्वारा निंदाई गुड़ाई भी की जा सकती है।
· अवांछित पौधों को निकालने में आसानी रहती है। |