संतरा बागवानी हेतु मिट्टी के आवश्यक गुण –
मिट्टी के अवयव | मिट्टी की गहराई से. मी. | |
0.15 | 15.30 | |
पी. एच. | 7.6.-7.8 | 7.9-8.0 |
इ.सी. | 0.12.0.24 | 0.21.0.28 |
मुक्त चुना % | 11.4 | 18.2 |
यांत्रिक अवयव | ||
रेती | 20.8.40.1 | 19.0.32.7 |
सील्ट | 26.8.30.4 | 11.2.26.8 |
चीकनी मिट्टी | 42.8.48.8 | 54.2.56.1 |
जलघुलषील घनायन मि.ली. ली. | ||
कैलशियम | 168.31.182.3 | 192.50.212.45 |
मैग्नेशियम | 39.4.42.7 | 32.20.42.10 |
सोडियम | 0.98.1.1 | 0.68.1.23 |
पोटैशियम | 1.2.2.8 | 11.40.12.80 |
वीनीमय घनायन (सेंटी मोल किलो | ||
कैलशियम | 31.9.32.3 | 38.1.41.2 |
मैग्नेशियम | 8.5.10.1 | 9.2.10.0 |
सोडियम | 0.68.1.23 | 0.8.1.1 |
पोटैशियम | 3.2.4.1 | 4.5.4.6 |
2.संतरे के पौधे |
कलम खरीदने में सावधानिया संतरे के रोगमुक्त पौधे संरक्षित पौधशाला से ही लिये जाने चाहिए। यह पौधे मफाइटोप्थारा फंफूद व विषाणु रोग से मुक्त होते है । रंगपुर लाईम या जम्बेरी मूलवन्त तैयार कलमे किये हुए पौधे लिये चाहिए । कल मे रोगमुक्त तथा सीधी बढी होना चाहिए जिनकी उचाई लगभग 60 से. मी. हो तथा मूलवंत पर जमीन की सतह से बडिंग 25 से.मी उचाई पर की हो । इन कलमो में भरपूर तन्तूमूल जडे होना चाहिए , जमीन से निकालने में जडे टूटनी नही चाहिए तथा जडो पर कोई जख्म नही होना चाहिए । |
3.बगीचे की स्थापनाः |
संतरे के पौधे लगाने के लिये 2 रेखांकन पदति का उपयोग होता है – वर्गाकार तथा षटभुजाकार पदति । षटभुजाकार पदति में 15 प्रतिशत पौधे वर्गाकार पदति की तुलना में अधिक लगाये जा सकते है । गढढे का आकार 75 X 75 X 75 से. मी. तथा पौधे को 6 X 6मी. दूरी पर लगाना चाहिए । इस प्रकार एक हैक्टेयर में 277 पौधे लगाये जा सकते है हल्की भूमि में 5.5 ग 5.5 मी. अथवा 5 X 5.मी. अंतर पर 300 से 400 पौधे लगाये जा सकते है । गढढे भरने के लिये मिट्टी के साथ प्रति गढढा 20 किलो सडी हुई गोबर की खाद के साथ 500 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट, 500 ग्राम नीम खली तथा 10 ग्राम कार्बेन्डाजिम का उपयोग करे । |
4.पौधो को लगाने के पूर्व उपचार व सावधानियाः |
पौधे की जडो को मेटालेक्जील एम जेड 72,2 2.75 ग्राम के साथ कार्बेन्डाजिम 1 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से पौधा लगाने के पहले 10-15 मिनट तक डूबोना चाहिए । पौधे लगाने के लिए जूलाई से सितंबर माह का समय उपयुक्त है ध्यान रखे कि कली का जोड जमीन की सतह से 25 से.मी. उपर रहे । जमीन से 2.5 से 3 फीट तक आवांछित शाखाओं को समय समय पर काटते रहे । बगीचो में अंतर फसले – संतरे के बगीचो में 6 साल के पश्चात् व्यवसायिक स्तर पर फसल ली जाती है । इस समय तक 6 ग 6 मीटर की काफी जगह खाली रह जाती है अतः कुछ उपयुक्त अंतरवर्ती दलहन फसले ली जा सकती है । कपास जैसी फसले जमीन से अधिक पोषक तत्व लेती है । |
5.उर्वरको का उपयोगः |
नत्रजनयुक्त उर्वरक की मात्रा को तीन बराबर भागों में जनवरी, जूलाई एवं नवम्बर माह में देना चाहिए । जबकि फास्फोरसयुक्त उर्वरक को दो बराबर भागों में जनवरी एवं जूलाई माह में तथा पोटाश युक्त उर्वरक को एक ही बार जनवरी माह में देना चाहिए । |
उर्वरको की मात्रा ( ग्राम / पेड / वर्ष ) |
पौधो की आयु उर्वरक | 1 वर्ष | 2 वर्ष | 3 वर्ष | 4 वर्ष एवं अधिक |
नाइटोजन | 1500 | 300 | 450 | 600 |
फास्फोरस | 50 | 100 | 150 | 200 |
पोटाश् | 25 | 50 | 75 | 100 |
पोश क तत्व | कमी के लक्षण | उपचार |
नत्रजन | पुरे पौधों की हरी पत्तियों पर एवं शिराओं
पर हल्का पीलापन दिखाई देता है। |
1-2 प्रतिशत युरिया का छिड़काव
या यूरिया 600-1200 ग्राम पौधा भूमि में डाले |
फास्फोरस | पत्तियाँ छोटी सिकुडकर लम्बी एवं भूरे
कलर की हो जाती है।पील मोटा और बीच में पोंचा होकर फल में रस कीमात्रा कम हो जाती है। |
फास्फेटी उर्वरक जैसे सिंगल सुपर फास्फेट 500-2000 ग्राम प्रति पौधा वर्ष न्यूटरल से अल्कालाईन भूमी मे डालेया रॉक फॉस्फेट 500-1000 ग्राम प्रति पौधा वर्ष अम्लीय भूमी में डाले। |
पोटाश | फल छोटे होकर छिल्का मोटा
होता है। तथा फल गोलाई की अपेक्षा लम्बे होते है। |
पोटेशियम नाइट्रेट (1-3प्रतिशत) छिडकाव या म्यूरेटापोटाश (180-500 ग्राम) पौधा/वर्ष भूमि में उपयोग करें। |
मैग्नीशियम | पत्तियाँ की शिराओं के बीच में
क्लोरेटिकहरे धब्बे दिखाई देते हैं। |
डोलोमाईट 1-1.50 किलो /पौधों /वर्ष भूमि में डाले विशेषत इसका उपयोग अम्लीय भूमि में करें। |
आयरन | पत्तियाँ कागजी प्रतित होतीं हैं तथा
बाद में शिराओं के बीच का क्षेत्र पीला होकरपत्तियाँ सुखकर नीचे गिर जाती है। |
फेरस सल्फेट (0.5 प्रतिशत) का छिड़काव करें या फेरस सस्फेट 200-250 ग्राम/पौधा/वर्ष भूमि में उपयोग करें। |
मेंगनीज | पत्तियों के षिराजाल पत्तियों के रंग से
अपेक्षाकृतअधिक हरा तथा पीलापन लिये होता है। |
मेंगनीज सस्फेट 0.25 प्रतिशत का छिड़काव करें या 200-300 ग्राम/पौधा/वर्ष मेंग्नीज सस्फेट काभूमि में डाले |
झींक | पत्तियाँ छोटी नुकीली गुच्छेनुमा
तथा शिराओं का पीला होना अपरीपक्व अवस्था में पत्तियों का झड़ना,पत्तियों कीऊँपरी सतह सफेद धारियाबनना अथवा पीली धारिया सफेद पृष्ठ लिये अनियमित आकार में शिराओं तथा मध्यशिराओं को घेरे हुये दिखता है। |
झींक सस्फेट 0.5 प्रतिशत का छीड़काव करें। या झींक सस्फेट 200-300 ग्राम/पौधा/वर्ष भूमी मे डालें। |
मोलिब्डेनम | पत्तियों के शिराओं के मध्य पीले धब्बे तथा बडे भूरे
अनियमित आकार के धब्बे के साथ पीलापन तथा पत्तियों केबीच का अंतर कम हो जाता है। |
अमोनियम मोलिब्डेनम 0.4-0.5 प्रतिशत का छिड़काव करें। या 22-50 ग्राम /पौधा/वर्ष भूमी मेंडालें। |
बोरान | नई पत्तियों पर जलषोषित धब्बे
और परीपक्व पत्तियों पर अर्ध पारदर्शी धब्बों के साथ मध्य एवं अन्य षिराये टुटतीहुई दिखाई देती है। |
सोडियम बोरेट 0.1-0.2 प्रतिशत का छिड़काव या बोरेक्स 25-50 ग्राम/पौधा/वर्ष भूमी मे उपयोग करें |
कॉपर | फलों के छिल्के पर
भूरापन लिये हूये क्षेत्र /दाग दिखाई देता है तथा फल हरा होकर कड़ा हो जाता है। ऊपर की शाखाएं सूखने लगती है। |
कॉपर सल्फेट 0.25 प्रतिशत का छिड़काव करें या 100-250 ग्राम/पौधा/वर्ष भूमी में उपयोंग करें।
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6. जलप्रबंधनः |
अधिक सिचाई से अधिक उत्पादन जैसी धारना सही नही है पटपानी (Flood Irrigation) से बगीचे को नुकसान होता है । गर्मी के मौसम में सिचाई 4 से 7 दिन तथा ठंड के मौसम में 10 से 15 दिन के अंतर में करना चाहिए । सिंचाई का पानी पेड के तने को नही लगना चाहिए । इसके लिए सिंचाई की डबल रिंग प़दति का उपयोग करना चाहिए । टपक सिंचाई उत्तम विधि है इससे से पानी की 40 से 50 प्रतिशत बचत होती है तथा खरपतवार भी 40 से 65 प्रतिशत तक कम उगते है । पेडो की वृद्धि व फलो की गुणवत्ता अच्छी होती है तथा मजदूरो की बचत भी होती है । |
अंबिया और मृग बहार लेने के लिए सतह सिंचाई अंतराल एवं मृदा आदृता तान अवधि |
सिंचाई अंतराल (दिन) | बहार लेने हेतु आवष्यक बाते | |||
हलकी जमीन | भारी जमीन | |||
ग्रीष्मकाल | शीतकाल | ग्रीष्मकाल | शीतकाल | |
5-7 | 12-15 | 7-10 | 15-21 | अंबिया बहार तान-नवंबर दिसंबर, तान समाप्ती- जनवरी का दूसरा पखवाडा, तान अवधि 15 से 60 दिन सिंचाई-वर्षा शुरू होने तक देना, |
5-7 | 12-15 | 7-10 | 15-21 | मृग बहार तान -मई,तान समाप्ती -जून, वर्षा के अभाव मे सिंचाई करे,तान अवधि – 20 से 45 दिन |
7.खरपतवार नियंत्रणः |
एक बीजपत्रीय खरपतवार मे मोथा , दूबघास तथा कुश एवं द्वीबीजपत्री में चैलाई बथुआ,दूधी,कांग्रेस, घास मुख्यतः पाये जाते है खरपतवार निकलने से पहले -डायूरान 3 कि. ग्रा या सीमाजीन 4 किग्रा. सक्रिय तत्व के आधार पर प्रति हेक्टर के दर से जून महीने के पहले सप्ताह में मिट्टी पर प्रथम छिडकाव और 120 दिन के बाद सितंबर माह में दूसरा छिडकाव करने से बगीचा लगभग 10 माह तक खरपतवारहित रखा जा सकता है खरपतवार निकलने के पश्चात् – ग्लायफोसेट 4 लीटर या पेराक्वाट 2 लीटर 500 से 600 लीटर पानी मे मिलाकर प्रति हैक्टर से उपयोग करे । जहा तक संभव हो खरपतवारनाशक फूल निकलने से पहले उपयोग करे । खरपतवारनाशक का प्रयोग मुख्य पौधो पर नही करना चाहिए । |
8.बहार उपचार (तान देना) |
पेडो में फूल धारणा सूखने करने हेतु फूल आने की अवस्था में बहार उपचार किया जाता है । इस हेतु मृदा के प्रकार के अनुसार बगीचे में 1 से 2 माह पूर्व सिंचाई बंद कर देते है । इससे कार्बर्न नत्रजन अनुपात में सुधार आता है (नत्रजन कम होकर कार्बन की मात्रा बढ जाती है) कभी कभी सिंचाई बंद करने के बाद भी पेडो में फूल की अवस्था नही आती ऐसी अवस्था में वृद्धि अवरोधक रसायन सी.सी.सी. 1500 – 2000 पी.पी.एम. या प्लेक्लोबुटराझाल (कलटार) का छिडकाव किया जाना चाहिए । |
9.फल गलनः |
फलो का गिरना वर्ष में दो या तीन बार में होता है- प्रथम फल गोली के आकार से थोडा बडा होने पर तथा दूसरा फल पूर्ण विकसित होने या फल रंग परिवर्तन के समय । फल तुडाई के कुछ दिन पहले फल गलन अम्बिया बहार की काफी गंभीर समस्या है । फल गलन की रोकथाम हेतु फूल आने के समय जिबे्रलिक अम्ल 10 पी.पी.एम. यूरिया 1 प्रतिशत का छिडकाव करे । फल लगने के बाद फलो का आकर 8 से 10 मि.मी. 2, 4-डी 15 पी.पी.एम. बिनामिल तथा कार्बेन्डाजिम 1000 पी.पी.एम. यूरिया 1 प्रतिशत का छिडकाव करे । फल 18 से 20 मि.मी. आकरमान के होने के बाद जिब्रेलिक अम्ल 10 पी.पी.एम. पोटेशियम नाइट्रेट 1 प्रतिशत छिडकाव करे । सितंबर माह में 2, 4 – डी 15 पी.पी.एम. बिनामिल या कार्बेन्डाजिम 1000 पी.पी.एम. और यूरिया 1 प्रतिशत का छिडकाव करे । अक्टूबर महीने में जिब्रेलिक अम्ल 10 पी.पी.एम. पोटेशियम नाइट्रेट 1 प्रतिशत का छिडकाव करे । 2,4 – डी या जिब्रेलिक अम्ल 30 मिली. अल्कोहल या एसिटोन में घोले व बाद में पानी मिलाए । मृग बहार की फसल के लिए भी उपरोक्त रोकथाम के उपाय करे । |
10.संतरा बागानों में कीट प्रबंधनः |
संतरे का सायला कीट नियंत्रण:- पर्ण सुरंगक कीट नियंत्रण:- नीबू की तितली नियंत्रण:- छाल खाने वाली इल्ली्र्र नियंत्रण :- ग्रसित भाग के जाले हटाकर डायक्लोरहॉस 1 प्रतिशत घोल छिद्र में डालकर छिद्र कपास से बंद करें। |
11.संतरा बागानों में रोग प्रबंधनः |
1. फायटोफ्थोरा बीमारी के लक्षण : फायटोफ्थोरा रोग से नर्सरी में पौधे पीले पड़ जाते है, बढ़वार रूक जाती है तथा जड़ो की सडन होती है। इस फफूंद के कारण जमीन के ऊपर तने पर दो फीट तक काले धब्बे पड़ जाते है जिसके कारण छाल सूख जाती है। इन धब्बो से गोंद नुमा पदार्थ निकलता है। पेडो के जडो पर भी इस फफूंद से क्श ति होती है। प्रभावित पौधे धीरे धीरे सूख जाते है। 2. रोग का उद्गम : फायटोफ्थोरा फफूंद के रोगाणु गीली जमीन से बहुत फफूँद बढ़ जाते है। इसके बीजाणू वर्षा पूर्व 25 से 30 डिग्री सेल्सियस तापमान पर बढकर थैली नुमा आकार के हो जाते है जो पानी के साथ तैरकर जड़ो की नोक तथा जड़ो की जख्म के संपर्क में आकार बीमारी का प्रसार करते है। इन बीजाणुओ से धागेनुमा फफूंद का विकास होता है जो बाद में कोशिकाओं में प्रवेश कर फफूंद का पुनः निर्माण करते है। फायटोफ्थोरा फफूँद पूरे वर्ष भर नर्सरी तथा बगीचो की नमी में सक्रिय रहती है। 3. रोग के फैलाव के प्रमुख कारण: 4. प्रबंधन: (ब) बागानों में फायटोफ्थोरा रोग का प्रबंधन रोकथाम के उपाय: रोग नियंत्रण के उपाय: |