फसल सिफारिशें
रबी फसल – चना
सुझाव
कम और ज्यादा तापमान हानिकारक है।
गहरी काली और मध्यम मिट्टी में बोनी करें।
मिट्टी गहरी,भुरभुरी होना चाहिए।
प्रमाणित और अच्छी गुणवत्ता, अच्छी अकुंरण क्षमता वाले बीजों का उपयोग करें। अपने क्षेत्र के लिए अनुमोदित किस्मों का उपयोग करें।
मध्य प्रदेश में अक्टूबर के मध्य में बोनी करना चाहिए।
यदि सिंचाई उपलब्ध हो तो नवम्बर तक बोनी की जा सकती है।
बीज शोधन के तीन दिन पहले बीज उपचार करना चाहिए।
राइज़ोनियम से बीज शोधन करना चाहिए।
यदि सल्फर और जिंक की कमी हो तो सल्फरयुक्त उर्वरकों और जिंक की उचित मात्रा डालना चाहिए।
सुझाव के अनुरूप ही उर्वरकों का उपयोग करें।
मिट्टी को ढीली और भुरभुरी करने के निदाई गुडाई करना चाहिए।
बुआई के 30 से 35 दिन बाद तक खरपतवार नियंत्रण करना चाहिए।
यदि लौह की कमी हो तो एक हेक्टेयर में 3 किलो फेरस सल्फेट 600 मि.ली. टीपोल 600 लीटर पानी में छिडके।
पानी का जमाव हो तो जल निकास की ब्यवस्था करें।
कीडों से बचाव हेतू अनुकूल उपाय करें।
चने के साथ निम्नलिखित फसलें इस अनुपात में उगाए
चने और कुसुम 6:2 के अनुपात में
चने और सरसों 6:2 के अनुपात में
चने और अलसी 6:4 के अनुपात में
चने और सुरजमूखी 6:4 के अनुपात में
जब फली का रंग पीले से भुरा हो जाए तब कटाई करनी चाहिए।
कटाई के बाद फसल को अच्छी तरह सुखाए।
उर्वरक प्रबंधन
चना एक दलहनी फसल है जो वायुमण्डल से नाइट्रोजन को स्थरीकरण की क्षमता रखते है।
फसल को कुछ नाइट्रोजन जीवाणु से मिल जाती है।
बाकी नाइट्रोजन खाद इत्यादि से मिल जाती है।
20:50-60 :40 किलो एन.पी.के. प्रति हेक्टेयर का उपयोग बुआई के समय करें।
हर तीन साल में 15 से 20 बैलगाड़ी सड़ी गली खाद डालना लाभदायक रहेगा।
अत्याधिक नाइट्रोजन से पौधे तो बढ़ते है परन्तु उपज कम हो जाती है।
अंकुरण की अवस्था में नाइट्रोजन की कमी नहीं होना चाहिए जिससे नाइट्रोजन स्थरीकरण जीवाणु अच्छी तरह विकसित हो जाए।
सिंचाई प्रबंधन
चने की खेती असिंचित फसलों के रूप में होती है, इसलिए अगर एक सिंचाई उपलब्ध हो तो हल्की सिंचाई की जा सकती है।
अगर एक सिंचाई उपलब्ध हो तो फूल आने के पहले करनी चाहिए जिससे अच्छे फूल आए और अधिकतम उपज हो।