बासमती धान की वैज्ञानिक खेती

बासमती धान विश्व में अपनी एक विशिष्ट सुगंध तथा स्वाद के लिए भली-भॉति जाना जाता है। भारत को बासमती
धान का जनक माना जाता है। इसकी विश्व मे बढती मॉग तथा निर्यात की सम्भावनाओं ध्यान में रखते हुए इसकी
वैज्ञानिक खेती बहुत महत्वपूर्ण हो गयी है।

उन्नतशील प्रजातियॉ:-
पूसा 1692: यह 2020 में विमोचित सिंचित अवस्था में धान-गेंहूॅ फसल प्रणाली के लिये अति उपयुक्त किस्म है। इसके
पौधे अर्ध बौने एवं गिरन के प्रति प्रतिरोधक है तथा पकन पर इसके दाने झड़ते नहीं है। इसका चावल ज्यादा टूटता नहीं
है। यह बासमती धान की कम अवधि 110-115 दिन में पक कर तैयार होने वाली किस्म है। इसकी औसत उपज 50.60
कुन्तल प्रति है0 है।

पूसा बासमती 1718: यह 2017 में विमोचित सिंचित अवस्था के लिये उपयुक्त किस्म है। इस किस्म में पूसा 1121 के
सस्य गुणों को सुरक्षित रखते हुए रोगों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता को बढाया गया है। यह 136-138 दिन में पक कर
तैयार होने वाली किस्म है। इसकी औसत उपज 46.4 कुंटल प्रति है0 है।

पूसा 1728: यह 2016 में विमोचित सिंचित अवस्था के लिये उपयुक्त किस्म है। यह 140-145 दिन में पक कर तैयार
होने वाली किस्म है। इसकी औसत उपज 41.8 कुन्तल प्रति है0 है।

पूसा बासमती 1637: यह 2016 में विमोचित सिंचित अवस्था के लिये उपयुक्त किस्म है। इस किस्म मे पूसा बासमती-1
के सस्य गुणों को सुरक्षित रखते हुए बलास्ट रोग के प्रति प्रतिरोधक क्षमता को बढाया गया है। यह 130-135 दिन में
पक कर तैयार होने वाली किस्म है। इसकी औसत उपज 45-50 कुन्तल प्रति है0 है।
पूसा बासमती 1509: यह 2013 में विमोचित सिंचित अवस्था में धान-गेंहूॅ फसल प्रणाली के लिये उपयुक्त किस्म है।
इसके पौधे अर्ध बौने एवं गिरने के प्रति प्रतिरोधक है तथा पकने पर इसके दाने झड़ते नहीं है। यह पर्ण झुलसा व भूरा
धब्बा रोग के प्रति मध्यम प्रतिरोधी है। यह बासमती धान की कम अवधि 115-120 दिन में पक कर तैयार होने वाली
किस्म है। इसकी औसत उपज 50-55 कुन्तल प्रति है0 है।
पूसा 1612: यह 2013 में विमोचित सिंचित अवस्था में रोपाई के लिये उपयुक्त किस्म है। जो सुगन्ध 5 का विकसित रूप
है। यह ब्लास्ट बीमारी के प्रति प्रतिरोधी है तथा 120 दिन में पक कर तैयार हो जाती है। इस किस्म में लीफ ब्लास्ट
बीमारी के प्रतिरोधक जीन पीआईजैड 5 एवं पीआई 54 विद्यमान है। इसकी औसत उपज 55-60 कुन्तल प्रति है0 है जो
पैदावार की दृष्टि से पूसा बासमती-1 एवं पूसा 1121 से अच्छी है।
पूसा बासमती 6 (पूसा 1401): यह 2008 में विमोचित सिंचित अवस्था मे बुवाई/रोपाई के लिये उपयुक्त मध्यम बौनी
किस्म है जो पकने पर गिरती नहीं है। दानों की समानता व पकाने की गुणवत्ता के हिसाब से यह किस्म पूसा बासमती
1121 से बहुत ही अच्छी है क्योंकि इसका दाना पकने पर एक समान रहता है। इसमें बहुत अच्छी सुगंध आती है तथा
दुधिया दानों की संख्या 4 प्रतिशत से कम है। यह 150-155 दिन में पक कर तैयार होने वाली किस्म है। इसकी औसत
उपज 55-60 कुन्तल प्रति है0 है।
उन्नत पूसा बासमती 1(पूसा 1460): यह 2007 में विमोचित सिंचित अवस्था में रोपाई के लिये उपयुक्त किस्म है। इस
किस्म में पूसा बासमती-1 के सस्य गुणों को सुरक्षित रखते हुए जीवाणु पर्ण झुलसा रोग के प्रति प्रतिरोधक क्षमता को
बढाया गया है। पकाने में इसके दानों की गुणवत्ता बहुत अच्छी है तथा दुधिया दानों की संख्या 10 प्रतिशत से कम पाई
गयी है। यह 135 दिन में पक कर तैयार हो जाती है जो धान-गेंहूॅ फसल प्रणाली के लिये उपयुक्त है। इसकी उपज
लगभग 50-55 कुन्तल प्रति है0 होती है।

पूसा सुगंध 5 (पूसा 2511): यह 2005 में विमोचित सिंचित अवस्था में रोपाई के लिये उपयुक्त किस्म है। यह अर्ध बौनी
उच्च उपज देने वाली बहुफसलीय पद्धति के लिए उत्तम किस्म है। इस प्रजाति का दाना लम्बा व पकने के बाद चावल
अपेक्षाकृत अधिक लम्बा होता है। यह 125 दिन में पक कर तैयार हो जाती है जो सिंचित अवस्था में धान-गेंहूॅ फसल
प्रणाली के लिये उपयुक्त है। इसकी औसत उपज 60-70 कुंटल प्रति है0 है।
पूसा सुगंध 4 (पूसा बासमती 1121): यह 2005 में विमोचित सिंचित अवस्था में रोपाई के लिये उपयुक्त किस्म है। यह
140-145 दिन में पक कर तैयार हो जाती है जो तरावडी बासमती से 15 दिन अगेती है। इसका दाना लम्बा (8 मिमि पकाने के बाद लगभग 20 मिमि.) व पतला है जो गुणों में तरावडी बासमती से अच्छा है। यह कम लागत में उच्च
गुणवत्तायुक्त, निर्यात योग्य अधिक उपज देने वाली किस्म है। इसकी उपज लगभग 40 कुन्तल प्रति है0 होती है।
पूसा आर.एच. 10 (संकर धान): यह 2001 में विमोचित सिंचित अवस्था में रोपाई के लिये उपयुक्त बासमती धान की
विश्व की प्रथम संकर प्रजाति है। इसका दाना लम्बा, पतला व सुगंधित होता है। पकने के बाद चावल लम्बाई में दोगुना
बढ़ने वाला व अधिक स्वादिष्ट होता है। यह एक मध्यम बौनी और 110-115 दिन में पक कर तैयार हो जाती है जो
धान-गेंहूॅ फसल प्रणाली के लिये उपयुक्त है। इसकी औसत उपज लगभग 65 कुन्तल प्रति है0 है।
पूसा सुगंध 3: यह 2001 में विमोचित सिंचित अवस्था में रोपाई के लिये उपयुक्त किस्म है। यह अर्ध बौनी, अधिक उपज
देने वाली बासमती गुणों से परिपूर्ण किस्म है। इसका दाना लम्बा, बारीक और सुगन्धित है जो पकाने पर लम्बाई में
दोगुना बढता है तथा खाने में मुलायम व स्वाद में अच्छा है। यह किस्म पकने में मध्यम अगेती (125 दिन) होने की वजह
से बहुफसलीय चक्र जैसे धान-सब्जी (पालक, मूली, आलू)-गेहू मूंग के लिए उपयुक्त है। इसकी औसत उपज 55
कुंटल प्रति है0 है।
पूसा सुगंध 2: यह 2001 में विमोचित सिंचित अवस्था में रोपाई के लिये उपयुक्त किस्म है। यह अर्ध बौनी, अधिक उपज
देने वाली बासमती गुणों से परिपूर्ण किस्म है। इसका दाना लम्बा, बारीक और सुगन्धित है जो पकाने पर लम्बाई में
दोगुना बढता है तथा खाने में मुलायम व स्वाद में अच्छा है। यह किस्म पकने में मध्यम अगेती (120 दिन) होने की वजह
से बहुफसलीय चक्र के लिए उपयुक्त है। इसकी औसत उपज 55 कुंटल प्रति है0 है।
पूसा बासमती 1: यह 1989 में विमोचित सिंचित अवस्था में रोपाई के लिए बासमती धान की प्रथम मध्यम बौनी किस्म
है। इसका दाना अत्यधिक लम्बा तथा पकाने पर मुलायम व सुगन्धित होता है। हमारे देश के बासमती चावल के
निर्यात में लगभग 50 प्रतिशत योगदान इसी किस्म का है। यह किस्म उत्तरी भारत में धान-गेहूँ फसल प्रणाली के लिए
उपयुक्त है। यह किस्म पकने में 130-135 दिन का समय लेती है। इसकी औसत उपज 45 कुंटल प्रति है0 है।

बीज दर तथा बीजोपचार:– बासमती धान के लिए 16-18 किग्रा0 बीज की मात्रा प्रति है0 प्रर्याप्त होती है। बीज को
कार्बेन्डाजिम 2 ग्राम या टैबुकोनाजोल 1 ग्राम फफॅूदनाशी या ट्राइकोग्रामा हरजीएनम 5 ग्राम/ किग्रा0 बीज की दर) से
उपचारित करके बोना चाहिए।

पौध तैयार करना:– एक है0 (12.5 बीघा) क्षेत्रफल में धान की रोपाई के लिए 800 वर्ग मीटर (लगभग एक बीघा)
क्षेत्रफल में जून के प्रथम पखवाड़े (1-15 जून)में नर्सरी की बुवाई करनी चाहिए। खेत को छोटी-छोटी तथा थोड़ा उची
उठी हुई क्यारियों में बाँट लेना चाहिए। बीज की बुआई से पहले 6-7 कु0 गोबर की खाद व 2 किग्रा0 जिंक सल्फेट
तथा बुवाई के समय 15 किग्रा0 एन0पी0के0(10ः26ः26), व 08 किग्रा0 यूरिया देना चाहिए।
तथा रोपाई के 08 व 16 दिन बाद 15 लीटर पानी (एक स्प्रे टंकी) में 300 ग्राम यूरिया, 75 ग्राम जिंक सल्फेट व 30
ग्राम फैरस सल्फेट का घोल बनाकर स्प्रे करने से खैरा तथा सफेदा रोग का प्रभावी नियन्त्रण किया जा सकता है।

रोपाई:- 20 से 22 दिन की पौध की रोपाई पक्तिंयों में करें। पंक्ति से पंक्ति की दूरी 20 सेमी. तथा पौधे से पौधे की
दूरी 15 सेमी. रखनी चाहिंये। एक स्थान पर 2-3 पौधे ही रोपित करें।

रासायनिक उर्वरकः- मृदा परीक्षण न होने की दशा में बासमती किस्मों में रोपाई से पूर्व पैडलिंग के समय प्रति बीघा 15
किग्रा. एन0पी0के0 (10ः26ः26) अथवा 09 किग्रा. डी0ए0पी0 व 05 किग्रा. म्यूरेट आफ पोटाश अथवा 25 किग्रा. सिंगल
सुपर फास्फेट, 05 किग्रा0 यूरिया व 05 किग्रा. म्यूरेट आफ पोटाश का प्रयोग करना चाहिए। तथा प्रति बीघा 04 – 04
किग्रा. यूरिया अथवा 08-08 किग्रा. कैल्शियम अमोनियम नाईट्रेट (ब्।छद्ध रोपाई के 20 दिन व 60 दिन बाद डालना
चाहिए।

खरपतवार नियंत्रण:- बासमती धान में निराई के अतिरिक्त रासायनिक विधि से खरपतवारों के नियंत्रण हेतु ब्यूटाक्लोर
50ः ई.सी. की 2-3 लीटर मात्रा अथवा प्रेटिलाक्लोर 50ः ई.सी. की 1.5-2 लीटर मात्रा अथवा पेन्डीमैथालिन 30ः ईसी. की 2.5-3 लीटर मात्रा को 500-600 लीटर पानी में मिलाकर रोपाई के 2-3 दिन के अन्दर छिड़काव (खरपतवारों
के अंकुरण के पूर्व) करना चाहिए। रसायन के प्रयोग के समय खेतों में 2-3 सेमी0 पानी होना चाहिए। अथवा
बिस्पाइरिबैक सोडियम 10ः एस.सी. की 250 एम.एल. मात्रा को 500-600 लीटर पानी में मिलाकर रोपाई के 20-25
दिन के बाद प्रति है0 की दर से छिड़काव करें तथा स्प्रे के 24 घंटे बाद सिंचाई करे।

कीट नियंत्रण:-

1) धान का तना छेदक

  • 20 फेरोमेन ट्रैप प्रति है0 के हिसाब से खेत में लगाऐ।
    -रोपाई के 30 दिन पश्चात या व्यस्क कीट दिखाई पड़ते ही 2-3 ट्राईकोकार्ड ( ट्राईकोग्रामा जेपोनिकम) 5-6 बार 8
    से 10 दिन के अन्तराल पर प्रति है0 के हिसाब से लगाने चाहिऐं।
  • र्काटाप हाईड्रोक्लोराइड (4 जी0) अथवा र्काबोफ्यूरान (3 जी0) अथवा फीपरोनिल (0.3 जी0आर0) को 10
    किग्रा0/एकड़ की दर से खेत में पानी के समय बुरकाव करें।
  • र्काटाप हाईड्रोक्लोराइड (50 एस0पी0) 400 ग्राम अथवा कार्बा ेसल्फान (25 ई0सी0) 400 एम0एल0 अथवा
    इमीडाक्लोरोपिड (17.8 एस0एल0) की 50-75 एम0एल0 मात ्रा को 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से स्प्रे
    करना चाहिए।
    2) धान का फुदका
  • नत्रजन का अधिक प्रयोग नहीं करना चाहिए।
  • प्रकोप होने पर खेत से पानी निकाल देना चाहिए।
  • थायामेथाजाम (25 डब्लू0जी0) 50 ग्राम अथवा इमीडाक्लोरोपिड (17.8 एस0एल0) की 100 एम0एल0 अथवा
    डेन्टोफयूरॉन (20 प्रतिशत एसजी) की 100 ग्राम मात्रा को 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से स्प्रे करना
    चाहिए।
  • फुदका के काला होने पर ब्यूप्रोफेजीन (25 एस0सी0) 500 एम0एल0 अथवा डेल्टामेथलीन (1प्रतिशत) $ ट्राइजोफॉस
    (35 प्रतिशत) की 500 एम0एल0 मात्रा को 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से स्प्रे करना चाहिए।
    3) गन्धी कीट
  • आसपास की मेंड़ों से खरपतवारों को नष्ट कर देना चाहिए।
  • नीम के तेल का 3-5 प्रतिशत घोल बनाकर स्प्रे करें।
  • बिवेरिया बेसियाना 2.5 किग्रा0 प्रति है0 की दर से छिड़काव करें।
    4) पत्ती लपेटक कीट
  • 10 लीटर देसी गाय का पेशाब व 05 लीटर नीम के तेल को 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से स्प्रे
    करना चाहिए।
  • ट्राईकोकार्ड (ट्राईकोग्रामा जेपोनिकम) 5-6 कार्ड 10 से 12 दिन के अन्तराल पर प्रति है0 के हिसाब से लगाने चाहिऐं।
  • कीट के आर्थिक क्षतिस्तर से ऊपर इण्डोसल्फान (35 ई0सी0) की 400 एम0एल0 मात्रा को 200 लीटर पानी में
    मिलाकर प्रति एकड़ की दर से 15 दिन के अन्तराल पर दो स्प्रे करे।

रोग नियंत्रण:-
1) धान का झोंका रोग – यह रोग पाइरीक्युलेरिया ओराइजी कवक के कारण होता है। पत्तियों पर ऑख के आकार
की आकृति के धब्बे बनते हैं जो बीच में राख के रंग के तथा किनारों पर गहरे कत्थई रंग के होते हैं।
नियंत्रण- ट्राइसाइक्लोजोल (75 डब्लू0पी0) 120 ग्राम अथवा हैक्जाकोनाजोल (5 ई0सी0) की 200 एम0एल0 मात्रा को
200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से स्प्रे करना चाहिए।

2) धान का पर्णच्छद झुलसा रोग (ैीमंज इसपहीज)– यह रोग राइजोक्टोनिया सोलेनाई कवक के कारण होता
है। पर्णच्छद पर अनियमित आकार के धब्बे बनते हैं जिनका किनारा गहरा भूरा तथा बीच का भाग हल्के रंग का
होता हैं। पत्तियों पर गोलाकार धब्बे बनते हैं।
नियंत्रण- प्रोपीकोनाजोल (20 ई0सी0) 200 एम0एल0 अथवा हैक्जाकोनाजोल (5ई0सी0) की 200 एम0एल0 अथवा
कार्बेन्डाजिम (50 डब्लू0पी0) 200 ग्राम मात्रा को 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से स्प्रे करना चाहिए।

3) धान का जीवाणु झुलसा रोग (ठंबजमतपंस समं िइसपहीज)- यह रोग जैन्थोमोनास कैम्पेस्ठिªस के कारण होता है।
इसमें पत्तियॉ नोंक अथवा किनारे से एकदम सूखने लगती हैं। सूखे हुए किनारे अनियमित एवं टेढ़ेमेढ़े होते है।
पत्तियॉ लिपट कर नीचे की ओर झुककर पीली या भूरी हो जाती है और पौधे को सुखा देती हैं।
नियंत्रण- हेतु खड़ी फसल में खेत से पानी निकालने की समय-समय पर व्यवस्था करें व यूरिया का प्रयोग अधिक न
करें तथा 20 ग्राम स्ट्रप्टोसाइक्लीन व 300 ग्राम कॉपर आक्सीक्लोराइड को 200 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़
की दर से स्प्रे करें।

साभार – क ृषि विज्ञान केन्द ्र, खेकड़ा (बागपत)

Leave a Reply

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.