मिट्टी की उपजाऊ शक्ति को बनाये रखने के लिए हरी खाद एक सस्ता विकल्प है । सही समय पर फलीदार पौधे की खड़ी फसल को मिट्टी में ट्रेक्टर से हल चला कर दबा देने से जो खाद बनती है उसको हरी खाद कहते हैं ।
आदर्श हरी खाद में निम्नलिखित गुण होने चाहिए
- उगाने का न्यूनतम खर्च
- न्यूनतम सिंचाई आवश्यकता
- कम से कम पादम संरक्षण
- कम समय में अधिक मात्रा में हरी खाद प्रदान कर सक
- विपरीत परिस्थितियों में भी उगने की क्षमता हो
- जो खरपतवारों को दबाते हुए जल्दी बढ़त प्राप्त करे
- जो उपलब्ध वातावरण का प्रयोग करते हुए अधिकतम उपज दे ।
हरी खाद बनाने के लिये अनुकूल फसले :
- ढेंचा, लोबिया, उरद, मूंग, ग्वार बरसीम, कुछ मुख्य फसले है जिसका प्रयोग हरी खाद बनाने में होता है । ढेंचा इनमें से अधिक आकांक्षित है ।
- ढैंचा की मुख्य किस्में सस्बेनीया ऐजिप्टिका, एस रोस्ट्रेटा तथा एस एक्वेलेटा अपने त्वरित खनिजकरण पैर्टन, उच्च नाइट्रोजन मात्रा तथा अल्प ब्रूछ अनुपात के कारण बाद में बोई गई मुख्य फसल की उत्पादकता पर उल्लेखनीय प्रभाव डालने में सक्षम है
हरी खाद के पौधो को मिट्टी में मिलाने की अवस्था
- हरी खाद के लिये बोई गई फसल ५५ से ६० दिन बाद जोत कर मिट्टी में मिलाने के लिये तैयार हो जाती है ।
- इस अवस्था पर पौधे की लम्बाई व हरी शुष्क सामग्री अधिकतम होती है ५५ स ६० दिन की फसल अवस्था पर तना नरम व नाजुक होता है जो आसानी से मिट्टी में कट कर मिल जाता है ।
- इस अवस्था में कार्बन-नाईट्रोजन अनुपात कम होता है, पौधे रसीले व जैविक पदार्थ से भरे होते है इस अवस्था पर नाइट्रोजन की मात्रा की उपलब्धता बहुत अधिक होती है
- जैसे जैसे हरी खाद के लिये लगाई गई फसल की अवस्था बढ़ती है कार्बन-नाइट्रोजन अनुपात बढ़ जाता है, जीवाणु हरी खाद के पौधो को गलाने सड़ाने के लिये मिट्टी की नाइट्रोजन इस्तेमाल करते हैं । जिससे मिट्टी में अस्थाई रूप से नाइट्रोजन की कमी हो जाती है ।
हरी खाद बनाने की विधि
- अप्रैल.मई माह में गेहूँ की कटाई के बाद जमीन की सिंचाई कर लें ।खेत में खड़े पानी में ५० कि० ग्रा० Áति है० की दर से ढेंचा का बीज छितरा लें
- जरूरत पढ़ने पर १० से १५ दिन में ढेंचा फसल की हल्की सिंचाई कर लें ।
- २० दिन की अवस्था पर २५ कि० Áति ह०की दर से यूरिया को खेत में छितराने से नोडयूल बनने में सहायता मिलती है ।
- ५५ से ६० दिन की अवस्था में हल चला कर हरी खाद को पुनरू खेत में मिला दिया जाता है ।इस तरह लगभग १०.१५ टन Áति है० की दर से हरी खाद उपलब्ध हो जाती है ।
- जिससे लगभग ६०.८० कि०ग्रा० नाइट्रोजन Áति है० प्राप्त होता है ।मिट्टी में ढेंचे के पौधो के गलने सड़ने से बैक्टीरिया द्वारा नियत सभी नाइट्रोजन जैविक रूप में लम्बे समय के लिए कार्बन के साथ मिट्टी को वापिस मिल जाते हैं ।
हरी खाद के लाभ
- हरी खाद को मिट्टी में मिलाने से मिट्टी की भौतिक शारीरिक स्थिति में सुधार होता है ।
- हरी खाद से मृदा उर्वरता की भरपाई होती है
- न्यूट्रीयन् टअस की उपलब्धता को बढ़ाता है
- सूक्ष्म जीवाणुओं की गतिविधियों को बढ़ाता है
- मिट्टी की संरचना में सुधार होने के कारण फसल की जड़ों का फैलाव अच्छा होता है ।
- हरी खाद के लिए उपयोग किये गये फलीदार पौधे वातावरण से नाइट्रोजन व्यवस्थित करके नोडयूल्ज में जमा करते हैं जिससे भूमि की नाइट्रोजन शक्ति बढ़ती है ।
- हरी खाद के लिये उपयोग किये गये पौधो को जब जमीन में हल चला कर दबाया जाता है तो उनके गलने सड़ने से नोडयूल्ज में जमा की गई नाइट्रोजन जैविक रूप में मिट्टी में वापिस आ कर उसकी उर्वरक शक्ति को बढ़ाती है ।
- पौधो के मिट्टी में गलने सड़ने से मिट्टी की नमी को जल धारण की क्षमता में बढ़ोतरी होती है । हरी खाद के गलने सड़ने से कार्बनडाइआक्साइड गैस निकलती है जो कि मिट्टी से आवश्यक तत्व को मुक्त करवा कर मुख्य फसल के पौधो को आसानी से उपलब्ध करवाती है
- हरी खाद दबाने के बाद बोई गई धान की फसल में ऐकिनोक्लोआ जातियों के खरपतवार न के बराबर होते है जोो हरी खाद के ऐलेलोकेमिकल प्रभाव को दर्शाते है ।
REKHA SANSANWAL
Ph.D. MICROBIOLOGY
CCS HAU, HISAR