भोपाल -मध्यप्रदेश। कृषि क्षेत्र में लगातार उन्नति के लिए मध्यप्रदेश को लगातार पांच बार भारत सरकार का कृषि कर्मण पुरस्कार मिल चुका है, ये वही राज्य है, जिसके लाखों किसान एक जून से सड़कों पर है। किसान दूध सड़कों पर बहा रहे हैं, और जनता लाइऩ में लगी है। मंडियों में पिछले कई दिनों से एक दाना नहीं खरीदा गया है। कई जगह किसान और पुलिस के बीच झड़प भी हो चुकी है।
मध्यप्रदेश आलू, लहसून, प्याज उत्पादन में देश में करीब-करीब दूसरे नंबर पर आता है, लेकिन पिछले दिनों इंदौर के आसपास के तमाम किसानों ने अपना प्याज खेतों में भैसों से चरवा दिया। आलू के सीजन में इसी इंदौर के तमाम किसानों को मंडी में आलू के साथ पैसे भी देने पड़े थे। उपज का मूल्य नहीं मिलने से किसान कर्ज में दबता जा रहा है। कर्ज में दबे किसान मौत को गले लगा रहे हैं।
किसानों की कर्जदारी पर नेशनल ब्यूनरो ऑफ इंडिया का सर्वे बताता है कि मध्यप्रदेश में इस समय सीमांत व छोटे किसान मिलाकर कुल 85 लाख काश्तकार हैं। इसमें से करीब 50 लाख किसान 60 हजार करोड़ कर्जे के बोझ तले दबे हुए हैं। पिछले 14 सालों के भाजपा शासनकाल में किसानों के कर्ज में 10 से 15 फीसदी की वृद्धि हुई है। जिन किसानों पर 13 साल पहले सिर्फ एक लाख रुपए तक का कर्ज था वह बढ़कर 12 लाख रुपए हो गया है। और जिन पर कर्ज नहीं था वे सात लाख रुपए के कर्ज में डूब गए। भारत सरकार के आर्थिक सर्वेक्षण की रिपोर्ट के मुताबिक मध्यप्रदेश में भी समर्थन मूल्य इतना नहीं है कि वह किसानों को फसल का उचित दाम दिला सके। ऐसे में किसानों के लिए खेती घाटे का सौदा बन चुकी है, किसान कर्ज लेते हैं और न चुका पाने की स्थिति में फांसी के फंदे को गले लगा रहे हैं।
मध्यप्रदेश में किसान आंदोलन में सक्रिय आम किसान यूनियन से जुड़े कृषि जानकार केदार सिरोही कहते हैं, “किसान कर्ज मे दबा है, उपज का मूल्य नहीं मिल रहा है। खेत में जो सब्जियां, माटी मोल होती हैं शहरों में वो महंगी हो जाती हैं। हमारे यहां गांवों में दूध 16 से 20 रुपए किलो है तो शहरों में 60-70 रुपए में बिक रहा है। लाभ सिर्फ बिचौलिए कमा रहे हैं, इसलिए हम लोग चाहते हैं कि सरकार किसानों को लाभकारी मूल्य दे। अगर बाजार में रेट कम हैं तो सरकार बोनस दे, ताकि किसानों की लागत तो निकले।’
कर्ज़माफी और स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट लागू करने की मांग कर रहे सिरोही आगे कहते हैं, “खेती राज्य सरकार का सब्जेट है तो शिवराज जी केंद्र का बहाना लेकर पल्ला नहीं झाड़ सकते। सरकार चाहे तो कॉपर्रेटिव का कर्जा खुद माफ करे। और जरुरत पड़ने पर नियमानुसार केंद्र से क्षतिपूर्ति ले। दूसरा पिछली बार सरकार सरकारी मूल्य पर प्याज खरीदा था, तो इस बार क्यों नहीं। हमारी सरकार से लड़ाई नहीं है लेकिन किसान का जिंदा रहना भी जरुरी है।”
वो आगे कहते हैं, “यहां प्याज का बंपर उत्पादन हुआ लेकिन कीमत 50 पैसे मिली, जबकि किसान की लागत ही साढ़े 4 रुपए किलो की आती है। दो साल पहले सरकार ने मलेशिया से प्याज मंगवाया और हमने 10-12 रुपए में खरीदा वो कीमत किसानों को क्यों नहीं दी जाती। बार-बार कृषि कर्मण पुरस्कार पाने वाले राज्य में किसान की मासिक आमदनी हमारे चार सार के सर्वे में 813 रुपए निकली है।’
इंदौर निवासी किसान दिलीप पाटीदार (33 वर्ष) कनाडिया गांव में 4 बीघे पक्की जमीन है। इस बार प्याज में उन्हें बहुत घाटा हुआ वो कहते हैं, “पिछले 4-5 वर्षों से लगातार घाटा झेलते-झेलते मेरी हिम्मत टूट रही है, अब खेती करना नहीं चाहता।’
केंद्र में मोदी सरकार के बनने के बाद खाद्य सामग्री का आयात बढ़ाया गया, जिससे किसानों द्वारा उत्पादित बंपर पैदावार के बजार में उचित दाम नहीं मिल पाए। पीएम मोदी ने साउथ अफ्रीका जाकर तुअर दाल के आयात को हरि झंडी दे दी, जिससे मध्यतप्रदेश के मंडियों में तुअर के दाम 10 हजार रुपए तक घट गए। इस तरह चना का आयात भी अफ्रीका से होने के कारण दाम 5 हजार रुपए तक गिर गए हैं। सब्जियों में भी आलू के दो रुपए किलो बिकने से प्रदेश के सात जिलों के किसानों ने आलू की फसल को खेतों से नहीं उखाड़ा। क्योंकि फसल को निकाल कर मंडी तक पहुंचाने में औसतन लागत पांच रुपए किलो पड़ रही थी।