देश में रोज 33 किसानों की खुदकुशी, किसानी से जुड़े कारोबारी कमा रहे हैं करोड़ों रुपए

केंद्र सरकार की जानकारी के मुताबिक देश में हर साल एवरेज 12 हजार से ज्यादा किसान खुदकुशी कर रहे हैं। (सिम्बॉलिक इमेज)

देश में रोज 33 किसानों की खुदकुशी, इनसे जुड़े कारोबारी कमा रहे हैं करोड़ों रुपए
देश में रोज 33 किसानों की खुदकुशी, इनसे जुड़े कारोबारी कमा रहे हैं करोड़ों रुपए

मध्यप्रदेश का परसोना गांव। किसान सोने सिंह अपने परिवार के साथ घर की चौखट पर बैठे हैं। 42 डिग्री की तपती गर्मी के बीच पसीना पोछते हुए कहते हैं कि अब खेती करना बहुत मुश्किल हो गया है। वे बताते हैं कि पिछले 15 साल से हर बार नुकसान हो जाता है, इसलिए लगातार कर्ज में हैं। देश में ये हाल अकेले सोने सिंह के नहीं हैं। हालात इतने खराब हैं कि 10 साल (2001-2011) में देश में 90 लाख किसान कम हो गए हैं और 3.8 करोड़ खेतिहर मजदूर बढ़ गए हैं। वहीं, किसानी और खेती से जुड़े कारोबार तेजी से बढ़ रहे हैं। किसान को भले ही फायदा न हो रहा हो, लेकिन इनके जरिए कमाई करने वालों का कारोबार अच्छा चल रहा है। देश में पंपसेट, स्प्रिंकलर, पाइप और केबल का सालाना बिजनेस करीब एक लाख करोड़ रुपए का है।

 

हर साल किसान की खेती करने की लागत 7-8 फीसदी बढ़ गई है। जबकि इस साल पिछले चार साल की तुलना में अनाज और दालों की कीमतें सबसे नीचे चल रही हैं। वहीं दूसरी ओर खेती संबंधी तमाम कामों से जुड़ी कंपनियाें का लाभ हर साल करोड़ों रुपए में आ रहा है।
– केंद्र सरकार की ओर से मई में सुप्रीम कोर्ट में दी जानकारी के मुताबिक 2013 से लगातार हर साल एवरेज 12 हजार से ज्यादा किसान खुदकुशी कर रहे हैं। यानी रोजाना करीब 33 किसान।

FARMER-SUICIDE-GRAPh
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– किसानों की खराब होती हालत पर बात करते हुए कृषि विशेषज्ञ देविंदर शर्मा कहते हैं कि अगर बढ़ी हुई महंगाई दर को हटा दिया जाए तो देश में 25 साल में किसान ने उपज में घाटा ही खाया है।

शर्मा कहते हैं कि लागत लगातार बढ़ रही है। इंटरनेशनल राइस रिसर्च इंस्टीट्यूट, फिलीपींस की स्टडी बताती है कि एशिया में धान पर होने वाला पेस्टिसाइड का इस्तेमाल वक्त और मेहनत की बर्बादी है। इसके बाद भी भारत में धान में 45 प्रकार के पेस्टीसाइड्स का इस्तेमाल किया जा रहा है। गेहूं में 300 फीसदी पेस्टीसाइड्स का उपयोग बढ़ा है। जबकि गेहूं में इसकी जरूरत नहीं है, क्योंकि इसमें कीड़े कम लगते हैं। ऐसे में किसान की खेती करने की लागत बढ़ती है।
– आंध्र प्रदेश में 36 लाख एकड़ में किसान नॉन पेस्टीसाइड्स मैनेजमेंट अपना रहे हैं, जिसमें पेस्टीसाइड्स का इस्तेमाल नहीं किया जाता। नतीजा यह कि पैदावार बढ़ी है, कीड़ों की तादाद कम हुई है। एनवायर्नमेंट भी साफ हुआ है। साथ ही सेहत पर 40 फीसदी खर्च कम हुआ है।
– शर्मा ने कहा कि इस तरीके को देश में लागू करने की जरूरत है। फर्टिलाइजर के लिए केंद्र सरकार की ओर से दी जाने वाली सब्सिडी का बहुत बड़ा हिस्सा कंपनियों को सीधे जाता है, वहीं बीज, पेस्टीसाइड और दूसरे कृषि कारोबार से जुड़ी कंपनियां रियायतों का फायदा भी लेती हैं। बैंकों की अोर से किसानों के साथ ही इनसे जुड़ी कंपनियों को भी बड़ी मात्रा में रियायती दरों पर लान दे दिया जाता है।
हर साल बढ़ जाती है लागत

देश में रोज 33 किसानों की खुदकुशी, इनसे जुड़े कारोबारी कमा रहे हैं करोड़ों रुपए
देश में रोज 33 किसानों की खुदकुशी, इनसे जुड़े कारोबारी कमा रहे हैं करोड़ों रुपए

– पूर्व कृषि सचिव सिराज हुसैन के मुताबिक हर साल खेती करने की लागत (इनपुट कॉस्ट) सात से आठ फीसदी बढ़ जाती है। गेहूं और धान के समर्थन मूल्य में भी पिछले चार सालों से हर साल थोड़ी ही बढोतरी हो रही है। इसकी वजह से भी हालात खराब हुए हैं। किसानों को चूंकि लोन मिल जाता है इसलिए वे महंगे उपकरण खाद-बीज खरीद पाते हैं।

खेती करना मुश्किल हो रहा
– वहीं प्राइसवाटर हाउस कूपर्स के एग्रीकल्चर और नेचुरल रिसोर्स डायरेक्टर अजय काकरा ने कहा कि छोटे और सीमांत किसानों के लिए खेती करना लगातार मुश्किल होता जा रहा है। काकरा के मुताबिक अगर वक्त पर किसानों को सिंचाई मिल जाए तो प्रोडक्शन 2.5 गुना हो सकता है। किसान को खेती के लिए खाद, पेस्टिसाइड, ट्रैक्टर का इस्तेमाल करना और खरीदना मजबूरी है। एक बात यह भी कही जा रही है कि 85 फीसदी किसानों को बीमा का फायदा नहीं मिल पा रहा है। साथ ही 2003 से 2013 तक खेती करने की लागत 3.6 गुना बढ़ गई।
किसानों के भरोसे चल रहे इन काराेबार में खूब मुनाफा
1. फर्टिलाइजर
– सिर्फ तीन बड़ी कंपनियों की कमाई 1200 करोड़ रुपए
– देश में किसानों की हालत भले ही खराब हो, लेकिन फर्टिलाइजर की सबसे बड़ी तीन कंपनियों को 2016-17 के दौरान 1255.23 करोड़ का फायदा हुआ था। यह पिछले साल की तुलना में 37.45 फीसदी ज्यादा था। यानी साल दर साल इनकी आमदनी तो बढ़ रही है। सरकार इन्हें सब्सिडी भी देती है। इस बजट में 70 हजार करोड़ सब्सिडी का प्रावधान है।
2. पंप
कंपनियां 125 करोड़ के लाभ में, किसानों को महंगा लोन
– देश की तीन प्रमुख पंप सेट्स बनाने वाली कंपनियों का शुद्ध लाभ 2016-17 में 125.29 करोड़ रुपए हुआ। पंपसेट, स्प्रिंकलर, पाइप और केबल का बाजार सालाना करीब एक लाख करोड़ रुपए का है। कृषि उपकरण और ट्रैक्टर जैसी चीजों के लिए लोन 12% की दर पर मिलता है, जबकि कार के लिए 10% से कम पर ब्याज पर मिल जाता है।
3. पेस्टीसाइड्स
टॉप कंपनियों काे हुआ 900 करोड़ मुनाफा, 22% ज्यादा
– इस क्षेत्र की टॉप तीन कंपनियों ने 2016-17 में 895.89 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ कमाया। पिछले साल के मुकाबले यह 22.8 फीसदी अधिक था। पिछले फाइनेंशियल ईयर में इन्हीं कंपनियों ने 729.46 करोड़ रुपए का शुद्ध मुनाफा कमाया था। 2014-15 में ही देश इसका कारोबार 28,600 करोड़ रु. पहुंच गया था। जो 7.5 फीसदी से हर साल बढ़ रहा है।
4. बीज
– प्रमुख कंपनियों को 85 करोड़ का फायदा, टैक्स में भी छूट
– देश की बीज तैयार करने वाली तीन बड़ी कंपनियों को 2015-16 में 85.47 करोड़ रुपए का मुनाफा हुआ है। ब्रांडेड बीज कारोबार हर साल करीब 10% की रफ्तार से बढ़ रहा है। बीज का कारोबार 35 हजार करोड़ रुपए पर पहुंच गया है। किसान की फसलें सस्ती बिकती हैं, लेकिन बीज महंगा होता जा रहा है। सरकार बीज कंपनियों को टैक्स में भारी छूट भी देती है।
5. ट्रैक्टर्स
इन्होंने ट्रैक्टर बेचकर कमाया किसानों से 5300 करोड़
– देश में ट्रैक्टर बनाने वाली प्रमुख तीन कंपनियों की 2016-17 में कुल आय करीब 5300 करोड़ रुपए रही। इससे पहले के साल में यह करीब 4500 करोड़ रुपए थी। कंपनियों की आय करीब 17 फीसदी बढ़ी। देश में हर माह 50 लाख ट्रैक्टर बिक रहे हैं। जीएसटी लागू होने के बाद किसानों को प्रति ट्रैैक्टर करीब 30 हजार रुपए और चुकाने पड़ सकते हैं। सीआईआई के मुताबिक 2016-17 के दौरान देश में कुल 6,61,195 ट्रैक्टर बिके। अप्रैल 2017 में 54217 ट्रैक्टर खरीदे गए।
(सोर्स : कृषि मंत्रालय, बजट डॉक्यूमेंट, रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय, एसोचैम, सीआईआई, फिक्की, टाटा स्ट्रेटजिक मेनेजमेंट ग्रुप, ट्रैक्टर्स मेन्यूफेक्चरर्स एसोसिएशन, नेशनल सीड एसोसिएशन ऑफ इंडिया, द फर्टिलाइजर एसोसिएशन ऑफ इंडिया, इंडिया ब्रांड एंड इक्विटी और विशेषज्ञों से बातचीत के आधार पर।)

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