उद्देश्य-कृषकों की उपज को तारण पर रख कर ऋण की स्वीकृति।
योजना का स्वरूप और कार्यक्षेत्र- यह व्यवस्था इसलिए की गई है कि बाजार में कृषि उपज के भाव घटते-बढ़ते रहते हैं। यदि कृषक इसमें रुचि रखता है तो वह अपने कृषि उत्पादन का बैंकों के तारण पर ऋण प्राप्त कर सकता है। अच्छे भाव खुलने पर वह माल बेच सकता है और अपनी उपज का अधिक मूल्य अर्जित कर सकता है। बिचौलियों के शोषण से बचाव हो जाता है। योजना का कार्यक्षेत्र संपूर्ण मध्यप्रदेश है।
योजना क्रियान्वयन प्रक्रिया- कृषकों के भण्डार गृहों की रसीदों के तारण पर सहकारी बैंक द्वारा ऋण उपलब्ध कराया जायेगा, जिससे कृषक अपनी तात्कालिक आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकेगा। निकटतम स्थान पर भण्डार गृह/ग्रामीण गोदामों में कृषि उपज को रखकर तथा रसीद प्राप्त करने पर निकटतम सहकारी बैंक की शाखा से भी सहकारी समिति के माध्यम से आवेदन पत्र प्रस्तुत कर ऋण प्राप्त कर सकेगा।
पात्र हितग्राही- कृषक सदस्य को समिति का सदस्य होना अनिवार्य है।
वाहन ऋण योजना
उद्देश्य-ग्रामीण क्षेत्रों में परिवहन की सुविधाओं को विकसित करना।
योजना का स्वरूप और कार्यक्षेत्र- व्यक्तिगत और व्यावसायिक हितग्राहियों को वाहन क्रय करने के लिए 10.00 लाख रुपये तक का ऋण प्रदाय किया जाता है। योजना का कार्यक्षेत्र संपूर्ण मध्यप्रदेश है।
योजना क्रियान्वयन प्रक्रिया- प्रदेश के सभी जिला सहकारी केन्द्रीय बैंकों के माध्यम से इस योजना का क्रियान्वयन किया जाता है।
हितग्राही चयन प्रक्रिया- हितग्राहियों को वाहन क्रय करने के लिये 25 से 40 प्रतिशत तक के मार्जिन पर 10.00 लाख रुपये तक ऋण प्रदाय किया जाता है।
आभूषणों के तारण पर ऋण
उद्देश्य-कमजोर वर्ग के सदस्यों को कम ब्याज दर पर आकस्मिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये ऋण उपलब्ध कराना।
योजना का स्वरूप और कार्यक्षेत्र- सोने और चांदी के आभूषणों के तारण पर कम ब्याज दर पर आकस्मिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में इस योजना को चलाया जा रहा है। संपूर्ण मध्यप्रदेश योजना का कार्यक्षेत्र है।
योजना क्रियान्वयन- आवेदक को बैंक द्वारा निर्धारित फार्म पर गिरवी रखे जाने वाले आभूषणों तथा बर्तनों की जानकारी कि वह आभूषण अथवा बर्तन अन्य किसी व्यक्ति को रहन नहीं रखे गए हैं और उसके स्वयं के आधिपत्य में है देनी होती है। ऐसे आभूषणों और बर्तनों की जांच/मूल्यांकन बैंक द्वारा की जाती है।
हितग्राही चयन प्रक्रिया- आवेदक को बैंक का सदस्य बनना होगा। मूल्यांकन की रिपोर्ट के आधार पर आभूषणों/बर्तनों के बाजार मूल्य के 70 प्रतिशत तक का ऋण दिया जाता है। यह ऋण अधिक से अधिक 5000 रुपये की सीमा तक उपलब्ध कराया जा सकेगा। सामान्यतया ऐसे ऋण 12 माह की अवधि के लिए स्वीकृत किए जाते हैं।
फसल बीमा
उद्देश्य-चुने हुए क्षेत्रों और चुनी हुई फसलों के सभी ऋणी सदस्यों की फसल का बीमा कर नुकसान होने की भरपाई करना।
योजना का स्वरूप और कार्यक्षेत्र- यह योजना वर्ष 1985-86 से ऋणी सदस्यों के लिये अनिवार्य कर दी गई है। लघु और सीमांत सदस्यों को 90 प्रतिशत राशि देना होता है। शेष राशि केन्द्रीय और राज्य शासन द्वारा अनुदान के रूप में दी जाती है। मध्यप्रदेश के चुने हुए क्षेत्र और चुनी हुई फसलों का बीमा किया जाता है।
योजना क्रियान्वयन प्रक्रिया- जिला केन्द्रीय सहकारी बैंकों के माध्यम से योजना लागू है।
जिला सहकारी कृषि और ग्रामीण विकास बैंक की ऋण वितरण सुविधा
उद्देश्य-बायोगैस संयंत्र लगाने, स्प्रिंकलर, थ्रेशर खरीदने, मुर्गीपालन, भेड़, बकरी पालन के लिये ऋण देना।
योजना का स्वरूप और कार्यक्षेत्र – मध्यप्रदेश राज्य सहकारी कृषि और ग्रामीण विकास बैंक के अधीन प्रदेश की समस्त 45 जिला सहकारी कृषि और ग्रामीण विकास बैंक तथा इनकी कुल 450 शाखाओं में योजना संचालित की जा रही है।
किसान साख-पत्र
(किसान क्रेडिट कार्ड योजना)
उद्देश्य-सहकारी संस्थाओं द्वारा स्वीकृत साख सीमा से कृषकों को सरलता से ऋण उपलब्ध करवाना।
योजना का स्वरूप और कार्यक्षेत्र- सहकारी संस्थाओं द्वारा अपने कृषक सदस्यों को अधिकतम साख सीमा निर्धारित की जाना है। यह सीमा नगद और वस्तु रूप में अलग-अलग निर्धारित की जाती है। स्वीकृत ऋण सीमा में सदस्यों को संस्था की ओर से कृषक साख-पत्र जारी किया जाता है। जारी किये गये साख-पत्र के आधार पर सदस्य द्वारा आवश्यकतानुसार साख सीमा का उपयोग किया जाता है।
पात्र हितग्राही- ऐसे कृषक, जो सहकारी साख समिति के सदस्य और कृषि कार्यों के लिये आदान ऋण संस्था से प्राप्त करते हैं। उन्हें कृषि कार्यों के लिये ऋण जिला सहकारी केन्द्रीय बैंक और कृषि साख सहकारी समिति से दिया जाता है।
योजना क्रियान्वयन प्रक्रिया- (अ) साख पत्र के ‘अ’ भाग अर्थात नगद ऋण सीमा का उपयोग सदस्य द्वारा स्वीकृत अवधि में कभी भी आवश्यकता पड़ने पर चैक के माध्यम से किया जा सकता है। अर्थात इससे आहरण केश क्रेडिट लिमिट की भांति किया जाता है।
(ब) साख-पत्र के ‘ब’ भाग अर्थात वस्तु ऋण के उपयोग के अंतर्गत समिति द्वारा सदस्यों को खाद-बीज और अन्य आदान के लिये स्वीकृत साख सीमा का परमिट जारी किया जाता है। परमिट के आधार पर सदस्य को वस्तु ऋण उपलब्ध कराया जाता है।
(स) साख-पत्र के ‘अ’ भाग अर्थात नगद ऋण का भुगतान खरीफ क्षेत्र की स्थिति में 15 मार्च के पहले और रबी क्षेत्र होने की स्थिति में 15 जून के पहले करना अनिवार्य होता है। पत्र के ‘ब’ भाग अर्थात वस्तु ऋण का भुगतान 15 जून के पहले अनिवार्यत: किया जाना है।
(द) साख पत्र का नवीनीकरण प्रतिवर्ष किया जाता है। नवीनीकरण उसी दशा में किया जाता है जब सदस्य द्वारा ‘अ’ और ‘ब’ भाग की बकाया राशि का भुगतान निर्धारित समय सीमा में किया गया हो। योजना के अंतर्गत सदस्य को चैक बुक जारी की जाती है। सदस्य चैक के माध्यम से साख पत्र के आधार पर आवश्यकतानुसार आहरण कर सकता है।
(र) सदस्य को केश क्रेडिट लिमिट से व्यवहार करने के लिये बुक के साथ पास बुक भी जारी की जाती है, जिससे समस्त प्रविष्टियां होती हैं।
संपर्क – संबंधित सहकारी समिति।
अनुसूचित जाति/जनजाति के सदस्यों को पैक्स/लैम्पस
के अंश खरीदने/सदस्य बनने के लिये अनुदान
योजना का उद्देश्य और स्वरूप-अनुसूचित जाति/जनजाति वर्ग को आर्थिक रूप से कमजोर होने के कारण पैक्स/लैम्पस का एक अंश खरीदने और सदस्य बनने में समर्थ न होने के कारण अनुसूचित जाति के सदस्य को 45 रुपये के मान से तथा अनुसूचित जनजाति के सदस्य को 200 रुपये के मान से अनुदान के रूप में सहायता उपलब्ध करवायी जाती है।
कार्यक्षेत्र और पात्र हितग्राही- संपूर्ण प्रदेश के अनुसूचित जाति, जनजाति वर्ग के लोग।
हितग्राही चयन प्रक्रिया- संस्थाओं की ओर से प्रस्ताव जिला योजना समिति के समक्ष प्रस्तुत किए जाते हैं। स्वीकृति के बाद राशि संबंधित सहकारी बैंक के माध्यम से संस्थाओं को उपलब्ध करवा दी जाती है। इस राशि से उक्त वर्ग के हितग्राही को संस्था का सदस्य बना लिया जाता है।
योजना क्रियान्वयन की प्रक्रिया- अनुसूचित जाति/जनजाति के सदस्य को संस्था से संपर्क स्थापित कर एक साधारण प्रार्थना-पत्र संस्था को प्रस्तुत करते हुए कि वह संस्था का सदस्य बनना चाहता है, इच्छा व्यक्त करनी होगी।
स्वीकृति के लिये सक्षम अधिकारी जिले के उप/सहायक पंजीयक हैं।
संपर्क– पैक्स/लैम्पस के समिति सेवक और संस्था का अध्यक्ष।
जिला प्राथमिक सहकारी कृषि और ग्रामीण विकास बैंकों के
अंश खरीदने/सदस्य बनने के लिये ब्याज-रहित ऋण
योजना का उद्देश्य और स्वरूप-इस योजना में अनुसूचित जाति/जनजाति के कृषक सदस्य को जिला प्राथमिक सहकारी कृषि और ग्रामीण जिला विकास बैंकों का सदस्य बनाने और उसके अंश खरीदने के लिए प्रत्येक सदस्य को 500 रुपये अथवा ऋण प्राप्ति का पाँच प्रतिशत तक ब्याज रहित ऋण उपलब्ध करवाया जाता है।
कार्यक्षेत्र– योजना का कार्यक्षेत्र संपूर्ण मध्यप्रदेश है।
पात्र हितग्राही- संपूर्ण राज्य के अनुसूचित जाति और जनजाति के कृषक।
संपर्क– जिला प्राथमिक भूमि विकास बैंक।
प्राथमिक विपणन समितियों के अंश खरीदने/सदस्य बनने के
लिये अनुसूचित जाति/जनजाति के सदस्यों को अनुदान
योजना का उद्देश्य और स्वरूप-इस योजना में प्राथमिक विपणन समितियों के अंश खरीदने/सदस्य बनने के लिये प्रत्येक अनुसूचित जाति/जनजाति के सदस्य को 100 रुपये के मान से अनुदान के रूप में सहायता उपलब्ध करवायी जाती है।
कार्यक्षेत्र– योजना का कार्यक्षेत्र संपूर्ण मध्यप्रदेश है।
पात्र हितग्राही – संपूर्ण राज्य के अनुसूचित जाति/जनजाति के व्यक्ति।
संपर्क– प्रबंधक, प्राथमिक विपणन सहकारी समिति।
अनुसूचित जाति/जनजाति के सदस्यों को पैक्स/लैम्पस
के माध्यम से उपभोग/सामाजिक उपभोग ऋण
योजना का उद्देश्य और स्वरूप-अनुसूचित जाति/जनजाति के सदस्यों को शोषण से बचाने के लिए यह व्यवस्था की गई है कि सामाजिक कार्यक्रमों को संपन्न करने के लिये ऐसे वर्ग के सदस्य को 500 रुपये की सीमा तक उपभोग ऋण उपलब्ध कराया जाता है।
कार्यक्षेत्र– संपूर्ण मध्यप्रदेश योजना का कार्यक्षेत्र है।
पात्र हितग्राही- अनुसूचित जाति/जनजाति का सदस्य, जिस पैक्स/लैम्पस का सदस्य है, वह अपनी संस्था को आवेदन कर संस्था की ओर से राशि प्राप्त कर सकता है। इस राशि को स्वीकृत करने का अधिकार संस्था का है।
अनुसूचित जाति/जनजाति के सदस्यों के अल्पावधि ऋणों पर
मूल से ज्यादा देय ब्याज हेतु अनुदान (दामदुपट योजना)
योजना का उद्देश्य और स्वरूप-अनुसूचित जाति/जनजाति वर्ग के कृषकों द्वारा 10 वर्ष से अनाधिक अवधि के ऋणों पर मूल से ज्यादा ब्याज की वसूली न करना।
कार्यक्षेत्र– संपूर्ण मध्यप्रदेश योजना का कार्यक्षेत्र है।
हितग्राही चयन प्रक्रिया- अनुसूचित जाति/जनजाति वर्ग के कृषकों के 10 वर्ष से अनधिक अवधि के ऋण की देय राशि जिसमें मूल से ज्यादा ब्याज हो गया हो, इस योजना अंतर्गत चयनित किये जाते हैं।
योजना क्रियान्वयन प्रक्रिया- ऋणी सदस्य की बकाया मूल से ज्यादा ब्याज की राशि के अन्तर की प्रतिपूर्ति संस्था को शासन द्वारा की जाती है।