रोग |
आल्टरनेरिया ब्लाइट |
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हिन्दी नाम |
आल्टरनेरिया ब्लाइट |
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कारक जीवाणु |
आल्टरनेरिया ट्राईटीसाइना |
लक्षण एवं क्षति |
- उच्च आर्द्रता,अच्छी सिंचाई और तापमान 22 डि. से 28 डि. इस बीमारी के लिए अनुकूल है।
- आरम्भ में पत्ते में धब्बे दिखाई पड़ते है।
- धब्बे छोटे,गोल और बेंगनी रंग के होते है।
- बाद में धब्बों का आकार बढ़ जाता है और अनियमित रूप से बिखर जाते है।निचले पत्ते झड़ जाते है।
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नियंत्रण |
- ग्राम प्रति लीटर प्रति हेक्टेयर मेनकोजेब का छिड़काव करें। या 1.5 ग्राम प्रति लीटर कार्बाडिजिम का छिड़काव करें।
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आई.पी. एम |
- प्रतिरोधक किस्मों का उपयोग करें।
- खेत की साफ-सफाई पर ध्यान दें।
- प्रमाणित बीजों का उपयोग करें।
- देर से बोनी न करें।
- प्रभावित पौधों के अवशेषों को खेत से निकाल कर नष्ट कर दें।
- मई-जून के महीनों में जब तेज धूप हो,बीज को सुबह 4 घंटे तक पानी में भिगोने के बाद धुप में अच्छी प्रकार से सुखा लें।
- यह सावधानी रखना चाहिए कि बीज की अकुंरण क्षमता खत्म न हो।
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रोग |
आल्टानेरिया पत्ती अंगमारी |
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हिन्दी नाम |
आल्टानेरिया पर्ण झुलसन |
कारक जीवाणु |
आल्टानेरिया पर्ण झुलसन |
लक्षण एवं क्षति |
- आरंभ में पत्तियों के ऊपरी हिस्से पर गोल धब्बे दिखाई पड़ते है।
- ये धब्बे अनियमित रूप से फैले होते है।
- धब्बे भूरे से काले रंग के होते है।
- ऊतकक्षयी क्षेत्र चमकीले पीले रंग से घिरा रहता है।
- धब्बे बड़े होकर मिल जाते है और बड़े धब्बे बन जाते है।
- काला चुर्ण पदार्थ कॉनीडिया और कॉनीडिया फॉर विकसित हो जाते है।
- इसी तरह के लक्षण बाली,पत्तियों पर दिखाई पड़ते है।
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नियंत्रण |
- 3 ग्राम प्रति लीटर मेनकोजेब या कार्बाडजिम 1.5 ग्राम प्रति लीटर का छिड़काव करें। या8 0.25 की दर से ज़ीनेब या मेनेब या कॉपर आक्सीक्लोराइड़ का 10-15 दिन के अन्तराल में छिड़काव करें।
- प्रमाणित बीजों का उपयोग करें।
- रोग प्रभावित पौधे उखाड़कर नष्ट कर दें।
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आई.पी. एम |
- प्रतिरोधक किस्में जैसे एन.पी.-4, एन.पी.-52, एन.पी. -100, एन.पी.-824 को बोये।
- खेत की साफ-सफाई पर ध्यान दें।
- प्रमाणित बीजों का उपयोग करें।
- देर से बोनी न करें।
- प्रभावित पौधों के अवशेषों को खेत से निकाल कर नष्ट कर दें।
- मई-जून के महीनों में जब तेज धूप हो,बीज को सुबह 4 घंटे तक पानी में भिगोने के बाद धुप में अच्छी प्रकार से सुखा लें।
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रोग |
जेनथोमोनस केम्पेस्ट्रस |
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हिन्दी नाम |
जीवाणु अंगमारी और कडुआ रोग |
कारक जीवाणु |
जेनथोमोनस केम्पेस्ट्रस |
लक्षण एवं क्षति |
- जीवाणु बीज से भी फैल सकता है।
- ये रोग बारिश,कीट से फैल सकती है।
- फली में दाने की जगह काला चूर्ण भर जाते है।
- फसल की प्रांरभिक अवस्था में रोग आता है।
- भारत में यह रोग नहीं होता है।
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नियंत्रण |
- खेत की साफ-सफाई का ध्यान रखें।
- प्रतिरोधक किस्में का उपयोग करें।
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आई.पी. एम |
- प्रतिरोधक किस्मों का उपयोग करें।
- खेत की साफ-सफाई पर ध्यान दें।
- प्रमाणित बीजों का उपयोग करें।
- देर से बोनी न करें।
- प्रभावित पौधों के अवशेषों को खेत से निकाल कर नष्ट कर दें।
- मई-जून के महीनों में जब तेज धूप हो,बीज को सुबह 4 घंटे तक पानी में भिगोने के बाद धुप में अच्छी प्रकार से सुखा लें।
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रोग |
बेकटिरियल रोग |
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हिन्दी नाम |
जीवाणु रोग |
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कारक जीवाणु |
– |
लक्षण एवं क्षति |
– |
नियंत्रण |
– |
आई.पी. एम |
- प्रतिरोधक किस्मों का उपयोग करें।
- खेत की साफ-सफाई पर ध्यान दें।
- प्रमाणित बीजों का उपयोग करें।
- देर से बोनी न करें।
- प्रभावित पौधों के अवशेषों को खेत से निकाल कर नष्ट कर दें।
- मई-जून के महीनों में जब तेज धूप हो,बीज को सुबह 4 घंटे तक पानी में भिगोने के बाद धुप में अच्छी प्रकार से सुखा लें।
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रोग |
पीला सड़न |
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हिन्दी नाम |
पीला सड़न |
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कारक जीवाणु |
कोरनीबेक्टीरियम ट्राइटीसी |
लक्षण एवं क्षति |
- यह रोग कीटों से भी फैलता है
- यह जीवाणु एनगुवीना ट्राइटीसी से सम्बन्ध है।
- बवालियों पर पीले पदाथै जमा हो जाता है।
- पदार्थ सूखने पर सफेद हो जाती है।
- बाद की बालियां चिपचिपे पदार्थ की तरह आती है।
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नियंत्रण |
- खेत की साफ-सफाई का ध्यान रखें।
- प्रतिरोधक किस्में का उपयोग करें।
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आई.पी. एम |
- प्रतिरोधक किस्मों का उपयोग करें।
- खेत की साफ-सफाई पर ध्यान दें।
- प्रमाणित बीजों का उपयोग करें।
- देर से बोनी न करें।
- प्रभावित पौधों के अवशेषों को खेत से निकाल कर नष्ट कर दें।
- मई-जून के महीनों में जब तेज धूप हो,बीज को सुबह 4 घंटे तक पानी में भिगोने के बाद धुप में अच्छी प्रकार से सुखा लें।
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रोग |
तुषाभ सड़न और जीवाणुपत्ती अंगमारी |
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हिन्दी नाम |
तुषाभ सड़न और जीवाणुपत्ती अंगमारी |
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कारक जीवाणु |
सुडोमोनस |
लक्षण एवं क्षति |
- यह रोग नमी युक्त क्षेत्रों में होता है।
- रोग बीज,कीट और वारिश से फैल सकता है।
- पत्ते, तने और फली पर गहरे हरे रंग के धब्बे दिखाई पड़ते है।
- बाद में धब्बे गहरे भूरे से काले हो जाते है।
- यदि मौसम गीला हो तो एक सफेद सा स्राव नजर आता है।
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नियंत्रण |
- खेत की साफ-सफाई का ध्यान रखें।
- प्रतिरोधक किस्में का उपयोग करें।
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आई.पी. एम |
- प्रतिरोधक किस्मों का उपयोग करें।
- खेत की साफ-सफाई पर ध्यान दें।
- प्रमाणित बीजों का उपयोग करें।
- देर से बोनी न करें।
- प्रभावित पौधों के अवशेषों को खेत से निकाल कर नष्ट कर दें।
- मई-जून के महीनों में जब तेज धूप हो,बीज को सुबह 4 घंटे तक पानी में भिगोने के बाद धुप में अच्छी प्रकार से सुखा लें।
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रोग |
सूटी मोल्ड |
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हिन्दी नाम |
सूटी मोल्ड |
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कारक जीवाणु |
आल्टानेरिया,क्लोडोस्पोरीयम,स्टेमफाइलम,इपीकोकुम |
लक्षण एवं क्षति |
- यह रोग नमी,बारिश वाले क्षेत्रों में होता है।
- एफिड के आक्रमण से यह रोग होता है।
- फफूंद के इकटठा होने से फली काली पड़ जाती है।
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नियंत्रण |
- खेत की साफ-सफाई का ध्यान रखें।
- प्रतिरोधक किस्में का उपयोग करें।
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आई.पी. एम |
- प्रतिरोधक किस्मों का उपयोग करें।
- खेत की साफ-सफाई पर ध्यान दें।
- प्रमाणित बीजों का उपयोग करें।
- देर से बोनी न करें।
- प्रभावित पौधों के अवशेषों को खेत से निकाल कर नष्ट कर दें।
- मई-जून के महीनों में जब तेज धूप हो,बीज को सुबह 4 घंटे तक पानी में भिगोने के बाद धुप में अच्छी प्रकार से सुखा लें।
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रोग |
भुरे गेरूआ रोग |
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हिन्दी नाम |
भुरे गेरूआ रोग |
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कारक जीवाणु |
पुसीनीया रीकोनडीटा |
लक्षण एवं क्षति |
- यह रोग ट्रोपिकल क्षेत्रों में ज्यादा होता है।
- उपज में काफी कमी हो जाती है।
- धब्बे पत्ती के ऊपरी हिस्से पर दिखाई देते है।
- धब्बे गोल या अण्डाकार होते है।
- धब्बे न तो फैलते है न ही मिलते है।
- धब्बे पत्ती के ऊपरी भाग में पाये जाते है।
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नियंत्रण |
- 3 ग्राम#लीटर मेनकोजेब या ट्राइडीमीफॉन से अच्छा निंयत्रण किया जा सकता है।
- खेत की साफ-सफाई का ध्यान रखें।
- प्रतिरोधक किस्में का उपयोग करें।
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आई.पी. एम |
- प्रतिरोधक किस्मों का उपयोग करें।
- खेत की साफ-सफाई पर ध्यान दें।
- प्रमाणित बीजों का उपयोग करें।
- देर से बोनी न करें।
- प्रभावित पौधों के अवशेषों को खेत से निकाल कर नष्ट कर दें।
- मई-जून के महीनों में जब तेज धूप हो,बीज को सुबह 4 घंटे तक पानी में भिगोने के बाद धुप में अच्छी प्रकार से सुखा लें।
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रोग |
जौ का पीत वामनता रोग |
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हिन्दी नाम |
जौ का पीत वामनता रोग |
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कारक जीवाणु |
– |
लक्षण एवं क्षति |
- यह एफिड के द्रारा फैलता है।
- यह रोग 20 से 22 डि तापमान पर फैलता है।
- पत्ती पीली या लाल हो जाती है।
- जड़े का विकास रूक जाता है।
- फफूंद के कारण प्रभावित पौधे सीधे हो जाते है, और काले पड़ जाते है। पकने और सेप्रोपाइटिक फंफूद से रंगहीन हो जाते है ।
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नियंत्रण |
- खेत की साफ-सफाई का ध्यान रखें।
- प्रतिरोधक किस्में का उपयोग करें।
- एफिड के नियंत्रण के लिए कीटनाशकों का उपयोग करें।
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आई.पी. एम |
- प्रतिरोधक किस्मों का उपयोग करें।
- खेत की साफ-सफाई पर ध्यान दें।
- प्रमाणित बीजों का उपयोग करें।
- देर से बोनी न करें।
- प्रभावित पौधों के अवशेषों को खेत से निकाल कर नष्ट कर दें।
- मई-जून के महीनों में जब तेज धूप हो,बीज को सुबह 4 घंटे तक पानी में भिगोने के बाद धुप में अच्छी प्रकार से सुखा लें।
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रोग |
टीलीशिया केरीस,टीलीशिया फाइटीडा, टीलीशिया कानट्रोवरसा |
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हिन्दी नाम |
वामनता बंट |
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कारक जीवाणु |
कक |
लक्षण एवं क्षति |
- यह रोग कम तापमान पर अकुंरण के समय होता है।
- इस रोग के आक्रमण से बंट बन जाते है।
- ये बंट गोलाकार होते है जिनमें मछली जैसी महक आती है।
- फलियां काली या नीली-हरी हो जाती है।
- पौधे की ऊँचाई कम हो जाती है।
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नियंत्रण |
- खेत की साफ-सफाई का ध्यान रखें।
- प्रतिरोधक किस्में का उपयोग करें।
- वीटावेक्स 2 ग्राम प्रति कि.ग्रा. से बीज उपचारित करें।
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आई.पी. एम |
- ातिरोधक किस्मों का उपयोग करें।
- खेत की साफ-सफाई पर ध्यान दें।
- प्रमाणित बीजों का उपयोग करें।
- देर से बोनी न करें।
- प्रभावित पौधों के अवशेषों को खेत से निकाल कर नष्ट कर दें।
- मई-जून के महीनों में जब तेज धूप हो,बीज को सुबह 4 घंटे तक पानी में भिगोने के बाद धुप में अच्छी प्रकार से सुखा लें।
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रोग |
टीलीशिया केरीस,टीलीशिया फाइटीडा |
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हिन्दी नाम |
वामनता बंट 2 |
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कारक जीवाणु |
कक |
लक्षण एवं क्षति |
- यह रोग कम तापमान पर अकुंरण के समय होता है।
- इस रोग के आक्रमण से बंट बन जाते है।
- ये बंट गोलाकार होते है जिनमें मछली जैसी महक आती है।
- फलियां काली या नीली-हरी हो जाती है।
- पौधे की ऊँचाई कम हो जाती है।
|
नियंत्रण |
- खेत की साफ-सफाई का ध्यान रखें।
- प्रतिरोधक किस्में का उपयोग करें।
- वीटावेक्स 2 ग्राम प्रति कि.ग्रा. से बीज उपचारित करें।
|
आई.पी. एम |
- प्रतिरोधक किस्मों का उपयोग करें।
- खेत की साफ-सफाई पर ध्यान दें।
- प्रमाणित बीजों का उपयोग करें।
- देर से बोनी न करें।
- प्रभावित पौधों के अवशेषों को खेत से निकाल कर नष्ट कर दें।
- मई-जून के महीनों में जब तेज धूप हो,बीज को सुबह 4 घंटे तक पानी में भिगोने के बाद धुप में अच्छी प्रकार से सुखा लें।
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|
रोग |
– |
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हिन्दी नाम |
क्राऊन सड़न |
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कारक जीवाणु |
– |
लक्षण एवं क्षति |
– |
नियंत्रण |
– |
आई.पी. एम |
- प्रतिरोधक किस्मों का उपयोग करें।
- खेत की साफ-सफाई पर ध्यान दें।
- प्रमाणित बीजों का उपयोग करें।
- देर से बोनी न करें।
- प्रभावित पौधों के अवशेषों को खेत से निकाल कर नष्ट कर दें।
- मई-जून के महीनों में जब तेज धूप हो,बीज को सुबह 4 घंटे तक पानी में भिगोने के बाद धुप में अच्छी प्रकार से सुखा लें।
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रोग |
डाऊनी माइलडियू |
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हिन्दी नाम |
मुदुरोमिल आसिता, हरितबाली |
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कारक जीवाणु |
इसलीरोपीथोरा मेक्रोस्पोरा |
लक्षण एवं क्षति |
- यह रोग नमी युक्त क्षेत्रों,जहाँ पानी का जमाव ज्यादा होता है।
- इस रोग के लिए अनुकूल तापमान 10-25 डि सेन्टीग्रेड रहता है।
- गांठे छोटी, अनियमित,कटी-फटी और हरी पीली रहती है।
- पत्ती मोटी हो जाती है और गुच्छे बन जाते है।
- तलशाखा में बालियां नहीं बनती और मर जाती है।
- दाने नहीं बनते है और पत्तियों जैसे बन जाते है।
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नियंत्रण |
- खेत की साफ-सफाई का ध्यान रखें।
- प्रतिरोधक किस्में का उपयोग करें।
|
आई.पी. एम |
- प्रतिरोधक किस्मों का उपयोग करें।
- खेत की साफ-सफाई पर ध्यान दें।
- प्रमाणित बीजों का उपयोग करें।
- देर से बोनी न करें।
- प्रभावित पौधों के अवशेषों को खेत से निकाल कर नष्ट कर दें।
- मई-जून के महीनों में जब तेज धूप हो,बीज को सुबह 4 घंटे तक पानी में भिगोने के बाद धुप में अच्छी प्रकार से सुखा लें।
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रोग |
गेहूँ का अरगट रोग |
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हिन्दी नाम |
गेहूँ का अरगट रोग |
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कारक जीवाणु |
क्लोवीसीप परपुरिया |
लक्षण एवं क्षति |
- सूखी रेती मिट्टी, कम तापमान और नमी इस रोग के लिए अनुकूल है।
- फफूंद मिट्टी या पौधे के अवशेषों में रहती है।
- खेत जहाँ अनाज काफी समय से उगाया जाता है वहाँ इस रोग का प्रभाव होता है।
- आधार पर्णच्छद पर धब्बे दिखाई पड़ते है।
- रोग से पौधा टुट सकते है और पौधे की संख्या में कमी आ जाती है।
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नियंत्रण |
- खेत की साफ-सफाई का ध्यान रखें।
- प्रतिरोधक किस्में का उपयोग करें।
|
आई.पी. एम |
- प्रतिरोधक किस्मों का उपयोग करें।
- खेत की साफ-सफाई पर ध्यान दें।
- प्रमाणित बीजों का उपयोग करें।
- देर से बोनी न करें।
- प्रभावित पौधों के अवशेषों को खेत से निकाल कर नष्ट कर दें।
- मई-जून के महीनों में जब तेज धूप हो,बीज को सुबह 4 घंटे तक पानी में भिगोने के बाद धुप में अच्छी प्रकार से सुखा लें।
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|
रोग |
राईज़ोटोनिया सोलानी |
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हिन्दी नाम |
– |
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कारक जीवाणु |
– |
लक्षण एवं क्षति |
- यह रोग कम तापमान पर अकुंरण के समय होता है।
- इस रोग के आक्रमण से बंट बन जाते है।
- ये बंट गोलाकार होते है जिनमें मछली जैसी महक आती है।
- फलियां काली या नीली-हरी हो जाती है।
- पौधे की ऊँचाई कम हो जाती है।
|
नियंत्रण |
- खेत की साफ-सफाई का ध्यान रखें।
- प्रतिरोधक किस्में का उपयोग करें।
- वीटावेक्स 2 ग्राम प्रति कि.ग्रा. से बीज उपचारित करें।
|
आई.पी. एम |
- प्रतिरोधक किस्मों का उपयोग करें।
- खेत की साफ-सफाई पर ध्यान दें।
- प्रमाणित बीजों का उपयोग करें।
- देर से बोनी न करें।
- प्रभावित पौधों के अवशेषों को खेत से निकाल कर नष्ट कर दें।
- मई-जून के महीनों में जब तेज धूप हो,बीज को सुबह 4 घंटे तक पानी में भिगोने के बाद धुप में अच्छी प्रकार से सुखा लें।
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|
रोग |
आल्टानेरिया,हेलमिन्थोस्पोरीयम और फयूजोरियम |
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हिन्दी नाम |
काला बिंदु |
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कारक जीवाणु |
– |
लक्षण एवं क्षति |
- रोग नमी युक्त मौसम में होता है।
- दाने रंगहीन हो जाते है।
- बालियां गहरी भूरी या काली हो जाते है।
|
नियंत्रण |
- प्रतिरोधक किस्मों का उपयोग करें।
- खेत की साफ-सफाई पर ध्यान दें।
- प्रमाणित बीजों का उपयोग करें।
- देर से बोनी न करें।
- प्रभावित पौधों के अवशेषों को खेत से निकाल कर नष्ट कर दें।
- मई-जून के महीनों में जब तेज धूप हो,बीज को सुबह 4 घंटे तक पानी में भिगोने के बाद धुप में अच्छी प्रकार से सुखा लें।
|
आई.पी. एम |
– |
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रोग |
फ्लेग कडुआ रोग |
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हिन्दी नाम |
ध्वज कडुआ रोग |
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कारक जीवाणु |
युरोसीसटिस ट्राईटीसी |
लक्षण एवं क्षति |
- यह रोग पत्तियों को प्रभावित करता है।
- शिरों के बीच में पर्णच्छद पर स्लेटी-काली सोरी दिखाई पड़ती है।
- प्रारंभिक अवस्था में सोरी अधिचर्म (एपीडरमीस)से ढकी रहती है जिसके टुटने कर काला पदार्थ दिखाई देता है।
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नियंत्रण |
- प्रमाणित,रजिस्टर्ड और रोग मुक्त बीजों का उपयोग करें।
- फंफूदनाशी से बीज उपचार करें।
- बीज को 1.5 कि.ग्रा.वीटावेक्स # कार्बाडीजिम प्रति कि.ग्रा बीज से उपचारित करें।
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आई.पी. एम |
- प्रतिरोधक किस्मों का उपयोग करें।
- खेत की साफ-सफाई पर ध्यान दें।
- प्रमाणित बीजों का उपयोग करें।
- देर से बोनी न करें।
- प्रभावित पौधों के अवशेषों को खेत से निकाल कर नष्ट कर दें।
- मई-जून के महीनों में जब तेज धूप हो,बीज को सुबह 4 घंटे तक पानी में भिगोने के बाद धुप में अच्छी प्रकार से सुखा लें।
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रोग |
फयूजेरियम पत्ती धब्बा और स्नो फुंद |
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हिन्दी नाम |
फयूजेरियम पत्ती धब्बा और स्नो फुंद |
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कारक जीवाणु |
केलोनेट्रीरिया नीवेलिस |
लक्षण एवं क्षति |
- यह रोग गेहूँ की कठिया किस्मों को ज्यादा प्रभावित करता है।
- हवा या बारिश से संक्रमण फैलता है।
- ठन्डा या नमी युक्त मौसम इस रोग को फैलने में मदद करता है।
- गांठ बनने की अवस्था में लक्षण दिखाई पड़ते है।
- पत्ते के मुड़ने वाले क्षेत्र में, गोल से अण्डाकार स्लेटी विक्षत दिखाई देते है।
- ये विक्षत बढ़कर हल्के स्लेटी केन्द्र वाले धब्बे को जाते है।
- पौधे की पूरी पत्तियां गिर जाती है दानों के वजन में कमी आती है।
|
नियंत्रण |
- खेत की साफ-सफाई का ध्यान रखें।
- प्रतिरोधक किस्में का उपयोग करें।
|
आई.पी. एम |
- प्रतिरोधक किस्मों का उपयोग करें।
- खेत की साफ-सफाई पर ध्यान दें।
- प्रमाणित बीजों का उपयोग करें।
- देर से बोनी न करें।
- प्रभावित पौधों के अवशेषों को खेत से निकाल कर नष्ट कर दें।
- मई-जून के महीनों में जब तेज धूप हो,बीज को सुबह 4 घंटे तक पानी में भिगोने के बाद धुप में अच्छी प्रकार से सुखा लें।
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रोग |
हेलमीनथोस्पोरियम पर्ण धब्बा |
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हिन्दी नाम |
हेलमीनथोस्पोरियम पर्ण धब्बा |
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कारक जीवाणु |
हेलमीनथोस्पोरियम सेटीवम |
लक्षण एवं क्षति |
- लीफ ब्लेड और पर्णच्छद पर गोल अलग अलग धब्बे दिखाई पड़ते है ।
- धब्बे बढ़कर हल्के भूरे से गहरे भुरे हो जाते है और निर्जीव हो जाते है।
- ये धब्बे मिलकर बड़े अनियमित धब्बे हो जाते है।
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नियंत्रण |
- प्रमाणित,रजिस्टर्ड और रोग मुक्त बीजों का उपयोग करें।
- प्रतिरोधक किस्मों का उपयोग करें।
|
आई.पी. एम |
- प्रतिरोधक किस्मों का उपयोग करें।
- खेत की साफ-सफाई पर ध्यान दें।
- प्रमाणित बीजों का उपयोग करें।
- देर से बोनी न करें।
- प्रभावित पौधों के अवशेषों को खेत से निकाल कर नष्ट कर दें।
- मई-जून के महीनों में जब तेज धूप हो,बीज को सुबह 4 घंटे तक पानी में भिगोने के बाद धुप में अच्छी प्रकार से सुखा लें।
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रोग |
करनाल बंट |
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हिन्दी नाम |
गेहूँ का करनाल बंट |
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कारक जीवाणु |
– |
लक्षण एवं क्षति |
- दाने का रंग काला पड़ जाता है।
- बीजाणु हवा से बिखर जाते है।
- अधिक संक्रमण होने पर दाना खाने योग्य नहीं रहता।
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नियंत्रण |
- इस रोग का नियत्रंण अभी नहीं पता है।
- प्रोपाइकोनाजोल 0.1 प्रतिशत ई.सी. का छिड़काव करने से रोग का संक्रमण कम किया जा सकता है।
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आई.पी. एम |
- मुलायम किस्मों की अपेक्षा कठिया गेहूँ की किस्में ज्यादा प्रतिरोधक होती है।
- खेत की साफ-सफाई का ध्यान रखें।
- प्रतिरोधक किस्मों का उपयोग करें।
- फूल आने के पहले सिंचाई करने से रोग का परिमाण घट जाता है।
- स्वस्थ खेत में रोग रहित बीजों का उपयोग करें।
- बाली आने के समय पानी गिरने से ग्रसन हो सकता है।
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रोग |
– |
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हिन्दी नाम |
बीज का करनाल बंट |
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कारक जीवाणु |
– |
लक्षण एवं क्षति |
- दाने का रंग काला पड़ जाता है।
- बीजाणु हवा से बिखर जाते है।
- अधिक संक्रमण होने पर दाना खाने योग्य नहीं रहता।
|
नियंत्रण |
- इस रोग का नियत्रंण अभी नहीं पता है।
- समय पर बोनी करे।
- प्रोपाइकोनाजोल 0.1 प्रतिशत ई.सी. का छिड़काव करने से रोग का संक्रमण कम किया जा सकता है।
- मुलायम किस्मों की अपेक्षा कठिया गेहूँ की किस्में ज्यादा प्रतिरोधक होती है।
- खेत की साफ-सफाई का ध्यान रखें।
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आई.पी. एम |
- मुलायम किस्मों की अपेक्षा कठिया गेहूँ की किस्में ज्यादा प्रतिरोधक होती है।
- खेत की साफ-सफाई का ध्यान रखें।
- प्रतिरोधक किस्मों जैसे पी.बी.डब्लू -299 का उपयोग करें।
- खेत की साफ-सफाई पर ध्यान दें।
- प्रमाणित बीजों का उपयोग करें।
- देर से बोनी न करें।
- प्रभावित पौधों के अवशेषों को खेत से निकाल कर नष्ट कर दें।
- मई-जून के महीनों में जब तेज धूप हो,बीज को सुबह 4 घंटे तक पानी में भिगोने के बाद धुप में अच्छी प्रकार से सुखा लें।
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रोग |
अनावृत कंड |
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हिन्दी नाम |
छीदरा कडुवा रोग |
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कारक जीवाणु |
ऊस्टालीगो ट्राइटीसी |
लक्षण एवं क्षति |
- ठन्डा व नमी वाला मौसम इस रोग के लिए अनुकूल है।
- कलियों के गुच्छों पर प्रभाव पड़ता है।
- यह रोग पौधे की किसी भी अवस्था में लग सकता है।
- यह बीज जनित रोग है।
- कलियों का पूरा गुच्छा रोग से प्रभावित रहता है।
- रेचीस को छोड़कर पूरा गुच्छा काले बारीक पदार्थ में बदल जाता है।
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नियंत्रण |
- प्रमाणित,रजिस्टर्ड और रोग मुक्त बीजों का उपयोग करें।
- प्रतिरोधक किस्मों का उपयोग करें।
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आई.पी. एम |
- रोग मुक्त बीजों का उपयोग करें।
- बोनी के समय 1 से 1.5 ग्राम कार्बोसीन या कार्बोडजीम से बीज को उपचारित करें।
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रोग |
भभूतिया |
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हिन्दी नाम |
दाहिया रोग |
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कारक जीवाणु |
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लक्षण एवं क्षति |
- 14 से 25 डि. तापमान इस रोग के लिए अनुकूल है।
- ठन्डा व नमी युक्त मौसम इस रोग के लिए अनुकूल है।
- पर्णच्छद और पत्ती के ऊपरी हिस्से पर सफेद या स्लेटी रंग का बारीक पाऊडर दिखाई पड़ता है।
- संक्रमक क्षेत्र पीले रंग का रहता है जो उंगलियों से रगड़ा जा सकता है।
- पत्तियों के संक्रमक क्षेत्र हरिमाहीन हो जाते है और फिर निर्जीव हो जाते है।
- अत्याधिक संक्रमण होने पर काले गोलफली आकार के केलेस्टोथीशिया बन जाते है जो की आखों से दिखाई देते है।
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नियंत्रण |
- प्रमाणित,रजिस्टर्ड और रोग मुक्त बीजों का उपयोग करें।
- प्रतिरोधक किस्मों का उपयोग करें।
- 1.5 ग्राम # लीटर कार्बाडजिम का छिड़काव करें।
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आई.पी. एम |
- प्रमाणित,रजिस्टर्ड और रोग मुक्त बीजों का उपयोग करें।
- प्रतिरोधक किस्मों का उपयोग करें।
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रोग |
स्कोरोशीयम विल्ट |
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हिन्दी नाम |
गेहूँ का स्कोरोशीयम उकटा रोग |
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कारक जीवाणु |
स्कोरोशीयम रोलफसाई |
लक्षण एवं क्षति |
- अम्लीय मिट्टी,20 डि. से अधिक तापमान,और अत्याधिक नमी इस रोग के लिए अनुकूल है।
- प्रारंभिक अवस्था में यह रोग लगता है जिससे पौधे में सीलन आ जाती है।
- तन्तु के सतह पर पंख जैसे माइसीलिया रहते है।
- नवजात स्केरोशिया सफेद रंग के होते है जो बाद में भूरे से गहरे भूरे रंग के हो जाते है।
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नियंत्रण |
- खेत की साफ-सफाई का ध्यान रखें।
- प्रतिरोधक किस्में का उपयोग करें।
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आई.पी. एम |
- खेत की साफ-सफाई का ध्यान रखें।
- प्रतिरोधक किस्में का उपयोग करें।
- प्रमाणित बीजों का उपयोग करें।
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रोग |
गायोमनोमाइसीस ग्रामीनीस |
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हिन्दी नाम |
गेहूँ का सर्वनाशी रोग |
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कारक जीवाणु |
गायोमनोमाइसीस ग्रामीनीस |
लक्षण एवं क्षति |
- इस रोग की संभावना उन खेतों में रहती है जहां जुताई, गुडाई ठीक से न की हो।
- जड़ों, निचले तने के हिस्सों सड़ जाते है और काले हो जाते है।
- यदि प्रांरभिक अवस्था में संक्रमण हो जाए तो पौधा अकड़ जाता है।
- संक्रमक पौधे में गुडाई ठीक से व हो तो बालियां में फल नही आते।
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नियंत्रण |
- खेत की साफ-सफाई का ध्यान रखें।
- प्रतिरोधक किस्में का उपयोग करें।
- प्रमाणित या रजिस्टर्ड बीजों का उपयोग करें।
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आई.पी. एम |
- खेत की साफ-सफाई का ध्यान रखें।
- प्रतिरोधक किस्में का उपयोग करें।
- प्रमाणित या रजिस्टर्ड बीजों का उपयोग करें।
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रोग |
गायोमनोमाइसीस ग्रामीनीस |
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हिन्दी नाम |
गेहूँ का सर्वनाशी रोग 2 |
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कारक जीवाणु |
गायोमनोमाइसीस ग्रामीनीस |
लक्षण एवं क्षति |
- इस रोग की संभावना उन खेतों में रहती है जहां जुताई, गुडाई ठीक से न की हो।
- जड़ों, निचले तने के हिस्सों सड़ जाते है और काले हो जाते है।
- यदि प्रांरभिक अवस्था में संक्रमण हो जाए तो पौधा अकड़ जाता है।
- संक्रमक पौधे में गुडाई ठीक से व हो तो बालियां में फल नही आते।
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नियंत्रण |
- खेत की साफ-सफाई का ध्यान रखें।
- प्रतिरोधक किस्में का उपयोग करें।
- प्रमाणित या रजिस्टर्ड बीजों का उपयोग करें।
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आई.पी. एम |
- खेत की साफ-सफाई का ध्यान रखें।
- प्रतिरोधक किस्में का उपयोग करें।
- प्रमाणित या रजिस्टर्ड बीजों का उपयोग करें।
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रोग |
पाइरीनोफोरा टाइकोस्टोपा या डचस्लेरा टाटीकाइ-रीपेन्स |
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हिन्दी नाम |
टेन पीला पत्ती धब्बा |
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कारक जीवाणु |
पाइरीनोफोरा टाइकोस्टोपा या डचस्लेरा टाटीकाइ-रीपेन्स |
लक्षण एवं क्षति |
- यह रोग गेहूँ के ठन्डे उत्पादक क्षेत्रों में होता है।
- पत्ती में भूरे दाग दिखाई पड़ते है।
- बाद में ये फैलकर बड़े गोल हो जाते है और पीले या हरिमाहीन हो जाते है।
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नियंत्रण |
- खेत की साफ-सफाई का ध्यान रखें।
- प्रतिरोधक किस्में का उपयोग करें।
- प्रमाणित या रजिस्टर्ड बीजों का उपयोग करें।
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आई.पी. एम |
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रोग |
टुन्डू रोग |
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हिन्दी नाम |
टुन्डू रोग |
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कारक जीवाणु |
इनगेउना टाइटीसी |
लक्षण एवं क्षति |
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नियंत्रण |
- खेत की साफ-सफाई का ध्यान रखें।
- प्रतिरोधक किस्में का उपयोग करें।
- प्रमाणित या रजिस्टर्ड बीजों का उपयोग करें।
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आई.पी. एम |
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रोग |
लूस स्मट |
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हिन्दी नाम |
अनावृत कंड |
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कारक जीवाणु |
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लक्षण एवं क्षति |
- सारे अण्डे काले पदार्थ में बदल जाते है।
- प्रारंभिक अवस्था में काले पदार्थ पर सिलवरी कवर रहता है।
- बाद में झिल्ली टुट जाती है, काले पदार्थ के बीजाणु हवा से उड़ जाते है और रेचीस रह जाते है।
- पहली या अगली पत्ती पर काला कंड विकसित हो जाता है।
- बालियों पर कोई प्रभाव नही पड़ता है।
- बीजाणु हल्के पीले रंग के, आकार में गोल से अण्डाकार होते है जिनके बाहरी किनारे में कंाटे रहते है।
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नियंत्रण |
- रोग मुक्त बीजों को उपयोग करें।
- प्रतिरोधक किस्मों का उपयोग करें।
- बीज को छ: घंटे तक 50 से 54 डि. सेन्टीग्रेट तापमान पर पानी से उपचारित करें।
- भिगे हुए बीजों को सीधे धूप में करीब चार घंटे तक सुखाए।
- 2.5 से 3 ग्राम वीटावेक्स या बेनलेट प्रति किलो की दर से उपचारित करें।
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आई.पी. एम |
- प्रतिरोधक किस्मों जैसे पी.डब्लू.डी.-233, पी.डब्लू.डी.-34,पी.डब्लू.डी.-138, टी.एल. 1210 का उपयोग करें।
- खेत की साफ-सफाई पर ध्यान दें।
- प्रमाणित बीजों का उपयोग करें।
- देर से बोनी न करें।
- प्रभावित पौधों के अवशेषों को खेत से निकाल कर नष्ट कर दें।
- मई-जून के महीनों में जब तेज धूप हो,बीज को सुबह 4 घंटे तक पानी में भिगोने के बाद धुप में अच्छी प्रकार से सुखा लें।
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रोग |
सेहू रोग |
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हिन्दी नाम |
सेहू रोग |
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कारक जीवाणु |
गेगला, ममनी, इनग्वाना ट्राइटीसी |
लक्षण एवं क्षति |
- यह रोग सूत्रकृमि से होता है।
- पौधे पर पिटीका में पौधा मिट्टी की सतह पर बढ़ता है फिर कुछ समय बाद सीधा बढ़ता है।
- बुआई के 20 से 25 दिन बाद पौधे के निचले हिस्से पर सूजन दिखाई देती है।
- पौधा आने पर पत्तियां बाहर अन्दर की तरफ मुड़ जाती है।
- रोगी पौधा बौना रह जाता है।
- प्रभावित पौधे पर निष्फल बालियां उत्पन्न होती है।
- रोगी बालियां में दानों की जगह फफोले होते है जो काफी दिनों तक हरे रहते है।
- कटाई के समय ये फफोले अगर मिट्टी में गिर जाए तो ये अगली फसल को भी प्रभावित करते है।
- इस रोग का प्रकोप बहुत अधिक होता है और यह 80 प्रतिशत तक उपज में कमी ला सकता है।
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नियंत्रण |
- ट्राइटीकेल डूरम और बेड, नीमाटोड के परपोषी है।
- पिटिका से मुक्त बीजों का उपयोग करें।
- प्रमाणित या रजिर्स्टड बीजों का उपयोग करें।
- फसल चक्र के सिंठ्ठात अपनाए।
- एक ही किस्म का उपयोग बार बार न करें।
- प्रभावित पौधा उखाड़ दें।
- रोगग्रस्त फसल के बीज को बोनी के लिए उपयोग में न लाये।
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आई.पी. एम |
- खेत की साफ-सफाई पर ध्यान दें।
- प्रमाणित बीजों का उपयोग करें।
- देर से बोनी न करें।
- प्रभावित पौधों के अवशेषों को खेत से निकाल कर नष्ट कर दें।
- मई-जून के महीनों में जब तेज धूप हो,बीज को सुबह 4 घंटे तक पानी में भिगोने के बाद धुप में अच्छी प्रकार से सुखा लें।
- यदि रोगग्रस्त फसल के बीजों को अगर उपयोग में लाना है तो उन्हें साधारण पानी में डुबायें, रोग ग्रस्त बीज हल्के होने के कारण तैर जाते है और उन्हें अलग कर ले।
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रोग |
काला किटट् |
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हिन्दी नाम |
काला किटट् |
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कारक जीवाणु |
पकसीनीया ग्रेमीनीस ट्राइटीसी |
लक्षण एवं क्षति |
- तने,पर्णच्छद और बालियों पर धब्बे दिखाई पड़ते है।
- तने पर गहरे भूरे धब्बे हो जाते है जिसमें फूटी एपीर्डमीस होती है।
- बीज की अकुंरण क्षमता खत्म हो जाती है।
- दाने रंगहीन हो जाते है।
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नियंत्रण |
- 3 ग्राम #लीटर मेनकोज़ेब ाि छिड़काव करें।या
1.5 ग्राम #लीटर कार्बाडजिम का छिड़काव करें।
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आई.पी. एम |
- प्रतिरोधक किस्मों जैसे डब्लू.एच. 147, जी.डब्लू- 190, एच. 1977 का उपयोग करें।
- खेत की साफ-सफाई पर ध्यान दें।
- प्रमाणित बीजों का उपयोग करें।
- देर से बोनी न करें।
- प्रभावित पौधों के अवशेषों को खेत से निकाल कर नष्ट कर दें।
- मई-जून के महीनों में जब तेज धूपहो,बीज को सुबह 4 घंटे तक पानी में भिगोने के बाद धुप में अच्छी प्रकार से सुखा लें।
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रोग |
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हिन्दी नाम |
सुत्रकृमि |
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कारक जीवाणु |
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लक्षण एवं क्षति |
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नियंत्रण |
- रसायनिक कीटनाशकों का उपयोग उस समय करना चाहिए जब कीट की संख्या आर्थिक देहली स्तर को पार कर ले।निम्नलिखित कीटनाशकों का उपयोग 600 से 750 लीटर के साथ करें।8 30 ई.सी. डाइमेथेएट 330 मि.मी प्रतिहेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।
8 25 ई.सी. मेथाइल डेमोटन 650 मि.मी
प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।
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आई.पी. एम |
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रोग |
मेलोडोगनी प्रजाती |
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हिन्दी नाम |
रूट नॉट नीमाटोड |
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कारक जीवाणु |
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लक्षण एवं क्षति |
- यह सूत्रकृमि जड़ के पास फफोले या गांठे बना देता है।
- इससे जड़ों में अधिक शाखायें विकसित होती है।
- पौधा हरिमाहीन हो जाता है और अकड़ जाता है।
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नियंत्रण |
निम्नलिखित कीटनाशकों का उपयोग 600 से 750 लीटर के साथ करें।
- 8 30 ई.सी. डाइमेथेएट 330 मि.मी प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।
- 8 25 ई.सी. मेथाइल डेमोटन 650 मि.मी प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।
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आई.पी. एम |
- प्रमाणित बीजों का उपयोग करें।
- गर्मी में गहरी जुताई करें जब तापमान 40 डि. करीब हो जिससे धूप के कारण निमाटोड आदि नष्ट होने में सहायता मिलती है।
- खेत की साफ सफाई पर ध्यान दें।
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रोग |
एनग्वेना ट्राइटीसी |
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हिन्दी नाम |
सीड गॉल सूत्रकृमि |
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कारक जीवाणु |
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लक्षण एवं क्षति |
- नमी युक्त मौसम और गीली मिट्टी गॉल निमाटोड को बढने में मदद करती है।
- निमाटोड तने, शीर्ष के क्षेत्र में घुस जाता है ।
- बिखरी पत्ती व तना इसके आक्रमण को दर्शाते है।
- पकने की अवस्था में पुष्पक पर फफोले दिखाई पड़ते है।
- ये गहरे रंग के होते है जो बीच की जगह ले लेते है।
- जैसे ही ये फफोले गीले होते है लार्वा अपना कार्य करने लगता है।
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नियंत्रण |
- रसायनिक नीमाटोडनाशकों का उपयोग उस समय करना चाहिए जब निमाटोड की संख्या आर्थिक देहली स्तर को पार कर ले।
- नीमाटोड के लिए आर्थिक देहली स्तर 1 प्रतिशत गॉल बीज से स्वस्थ बीजों का प्रतिशत है।
- 30 ई.सी. डाइमेथेएट 330 मि.मी प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।
- 25 ई.सी. मेथाइल डेमोटन 650 मि.मी प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।
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आई.पी. एम |
- प्रमाणित बीजों का उपयोग करें।
- संक्रमक बीजों को 2 प्रतिशत लवण को पानी में डाले।
- गॉल पानी में तैर जाते है, उन्हें अलग कर दे, फिर साफ पानी से धोए और फिर सुखाए।
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रोग |
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हिन्दी नाम |
सीरीयल सिस्ट सूत्रकुमि |
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कारक जीवाणु |
हीटेरोडेरा ऐवनी |
लक्षण एवं क्षति |
- यह सभी किस्मों पर आक्रमण करता है।
- संक्रमक पौधे के जड़े में बहुत सारी शाखायें हो जाती है और उनमें मबाद हो जाता है।
- मबाद सफेद रंग की होती है और फिर गहरी भूरी हो जाती है।
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नियंत्रण |
- रसायनिक नीमाटोडनाशकों का उपयोग उस समय करना चाहिए जब निमाटोड की संख्या आर्थिक देहली स्तर को पार कर ले।
- नीमाटोड के लिए आर्थिक देहली स्तर 2 अण्डे प्रति 2 लार्वा # ग्राम मिट्टी है।
- बोनी के समय 1.5 कि.ग्रा. 3 जी. कार्बाफयुरान प्रति हेक्टेयर का छिड़काव करें।
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आई.पी. एम |
- प्रतिरोधक किस्मों का उपयोग करें।
- चना या सरसों जैसी फसलों उगाए।
- गर्मी में गहरी जुताई करें।
- बोनी जल्दी करें।
source: किसान कल्याण तथा कृषि विकास विभाग |