महाराष्ट्र में 40 लाख से ज्यादा किसान परिवार कर्ज़ में डूबे

 

देश में सबसे अधिक किसानों की आत्महत्या की ख़बरें महाराष्ट्र से आती हैं। मराठवाड़ा और विदर्भ को किसानों की कब्रगाह कहा जाना लगा है। पिछले कई वर्षों से सूखे की मार झेल रहे महाराष्ट्र में किसानों की हालत दयनीय है।

देश में जितने भी किसानों ने आत्महत्याएं की हैं, उनमें से 45 फीसदी किसान महाराष्ट्र से हैं, पिछले दो दशक में महाराष्ट्र के 35 में से 28 जिले प्राकृतिक आपदा (सूखा, ओला और बारिश) से प्रभावित रहे हैं। साथ ही महाराष्ट्र के किसान सबसे अधिक नगदी फसलें उगाते हैं, इसमें लागत सबसे ज्यादा आती है। जैसे केला,कपास, संतरा, नासपाती और सोयाबीन, प्याज की अगर वक्त पर कीमत नहीं मिलीं तो उपज पूरी बर्बाद हो जाती है।केंद्रीय कृषि मंत्रालय के अनुसार महाराष्ट्र में 40,67,200 किसान परिवार कर्ज में डूबे हैं।

बढ़ते कर्ज के बोझ और उपज का मूल्य न मिलने से 1 जून से पश्चिमी महाराष्ट्र की अगुवाई में किसान सड़कों पर हैं। मैग्सेसे अवार्ड विजेता कृषि के जाने माने पत्रकार पी साईंनाथ कहते हैं, “महाराष्ट्र से शुरू हुआ किसानों का आंदोलन अब रूकने वाला नहीं है। पिछले दो दशक में सबसे ज्यादा 64 हजार किसान महाराष्ट्र में ही आत्महत्या किए हैं। देशभर में किसानों के हालत चिंताजनक हैं। किसानों के लिए कर्ज ही नहीं बल्कि उनकी उपज का उचित लाभ मिले यह भी बड़ा मुद्दा है। लेकिन केन्द्र से लेकर प्रदेश सरकरों का ध्यान किसानों को मुख्य मुद्दे पर नहीं है। महाराष्ट्र ताजा उदाहरण हैं जहां पर किसान नेताओं में फूट डालकर सरकार किसानों के आंदोलन को खत्म करने की साजिश की है।”

बीटी काटन का दंश झेल रहे महाराष्ट्र के किसान पिछले कई वर्षों से अपनी उपज का उचित मूल्य पाने के लिए संघर्ष करते रहे हैं। एक जून से फिर शेतकारी और कई किसान संगठनों ने 10 दिन महाराष्ट्र बंद कर रखा है। महाराष्ट्र में नागपुर के आसपास जो विदर्भ का भी इलाका कहलाता है, वहां कपास और संतरे की खेती बहुत होती है, तो मारठवाड़ा (औरंगबाद, नासिक, जलगाँव, सोलापुर) इलाके में गन्ना मुख्य फसल है,प्याज भी बहुतायत होता है। भुसावल का केला देशभर में प्रसिद्ध हैं, बाजवूद इसके आए दिन किसानों की आत्महत्या की ख़बरें आती हैं।

मुंबई से करीब 400 किमी. दूर सांगली जिले के तहसील वाल्वा के कारनबाड़ी के सुरेश काबड़े बताते हैं, “यहां का किसान पानी और प्रकृति से लड़कर खेती करता है, लेकिन उसे उचित दाम नहीं मिलता। हमारे पड़ोसी राज्य गुजरात में गन्ने की कीमत 300 से 450 तक जाती है, जबकि उसकी रिकवरी कम है, और हमारे यहां 300 रुपए प्रति कुंतल का ही रेट मिलता है। यही हाल बाकी फसलों का है, जो वादे कर ये (मोदी सरकार) सत्ता में थी, सब हवा हवाई है, अबकी चुनाव कुछ अलग होगा।”

जानकार बताते हैं, महाराष्ट्र की बड़ी चीनी मिलें और शराब इंडस्ट्री बड़े नेताओं की हैं। इन्हीं के पास कपड़ा और वो फैक्ट्रियां हैं जो किसानों का माल खपाती हैं। जो सप्लाई चेन को कंट्रोल करती हैं, बाजार और मंडियों में इन्हीं का राज चलता है, जिससे किसानों की उपज की उन्हें बेहतर कीमत नहीं मिल पाती है।

 

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