मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में किसान आंदोलन तेज होने के बीच जानेमाने गांधीवादी कार्यकर्ता पी वी राजगोपाल ने आज कहा कि सरकार पुलिसिया कार्रवाई की बजाय संवाद का सहारा ले और देश भर के किसानों की उपज की उचित कीमत सुनिश्चित करने के लिए सरकारी कर्मचारियों के वेतन आयोग की तर्ज पर एक आयोग का गठन किया जाए तथा मूल्य निर्धारण में किसानों की भी भूमिका होनी चाहिए। कई किसान आंदोलनों का नेतृत्व कर चुके राजगोपाल ने ‘भाषा’ से कहा, ‘‘किसान आंदोलन इतना बडा अचानक से नहीं बना है। किसानों में यह गुस्सा लंबे समय से चला आ रहा था और अब इतने बडे आंदोलन के रूप में सामने आया है। खेती में लागत बढ गई है और किसानों को उनकी उपज की उचित कीमत नहीं मिल पा रही है। किसानों को उनकी लागत के अनुसार उपज की उचित कीमत मिलनी चाहिए और सरकार यह सुनिश्चित करे।”
उन्होंने कहा, ‘‘हमारी मांग है कि सरकारी कर्मचारियों के लिए बनने वाले वेतन आयोग की तर्ज पर किसानों को लेकर भी आयोग का गठन किया जाए जो लागत की समीक्षा करके उपज की उचित कीमत तय करने में मदद करे।’’ राजगोपाल ने कहा कि अपनी उपज की कीमत तय करने में किसानों की प्रमुख भूमिका होनी चाहिए। उन्होंने कहा, ‘‘कारपोरेट जगत के लोग अपने उत्पादों की कीमत खुद तय करते हैं, लेकिन किसानों की उपज की कीमत दूसरे लोग तय करते हैं। ऐसा क्यों है? किसानों को यह अधिकार मिलना चाहिए कि वे अपनी उपज की कीमत तय करने में भूमिका निभाएं। उपज की एकतरफा कीमत तय नहीं होनी चाहिए।’’ हाल ही में मध्य प्रदेश के मंदसौर में पुलिसिया गोलीबारी में छह किसानों के मारे जाने के बाद किसान आंदोलन ने और भी बडा रूप ले लिया है। मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में किसान कर्जमाफी की मांग को लेकर आंदोलन कर रहे हैं। एकता परिषद के अध्यक्ष राजगोपाल ने कहा, ‘‘सरकारों को यह समझना चाहिए कि सडक पर उतरे किसान को पुलिसिया कार्रवाई से शांत नहीं कराया जा सकता।
उनके साथ संवाद करना होगा। सरकार सभी किसान संगठनों के साथ बैठे और समस्या का तात्कालिक एवं दीर्घकालीन समाधान ढूंढे।’’ उन्होंने कहा, ‘‘पहले किसानों की संपूर्ण कर्जमाफी की जाए और फिर उनकी समस्याओं के दीर्घकालीन समाधान के लिए जरूरी कदम उठाए जाएं।’’ भूमिहीन किसानों के लिए आंदोलन चला चुके राजगोपाल ने कहा कि किसानों की भूमि छीनने और उनकी उपज औने-पौने भाव में खरीदने की वजह से किसानों में नाराजगी बढी है। उन्होंने कहा, ‘‘सरकारों की अमूमन यही कोशिश रही है कि किसानों की जमीन को छीन कर बडे कारपोरेट घरानों को दी जाए। बडे कारपोरेट घराने जमीन लेकर उसका उंची कीमत पर सौदा कर देते हैं अथवा दूसरी वाणिज्यिक गतिविधियों में उसका इस्तेमाल करते हैं। भूमि छीनने के सरकारों के इस रवैये ने किसानों को नाराज किया है। उपज की उचित कीमत नहीं मिलने से उनका गुस्सा बढ गया है।’’